मालवीयजी धर्म भक्त , देश भक्त और समाज भक्त होने के साथ - साथ सुधारक भी थे , पर उनके सुधार कार्यों में अन्य लोगों से कुछ अंतर था l अन्य सुधारक जहाँ समाज से विद्रोह , संघर्ष करने लग जाते हैं वहां मालवीयजी समाज से मिलकर चलने के पक्षपाती थे l वे सुधार अवश्य करते थे , जैसे उन्होंने हरिजनों को मन्त्र दीक्षा दी , पर उन्होंने यह कार्य लोगों को समझा-बुझाकर और राजी कर के ही किया l उनका मत था कि समाज से विद्रोह कर के , अपने नए रास्ते पर चलने से कोई ठोस कार्य नहीं कर सकते l उस अवस्था में समाज हमारी बात की तरफ ध्यान ही नहीं देगा और उसका विरोध करेगा जिससे सुधार का कुछ भी उद्देश्य पूरा न होगा l
मालवीयजी ने सुधार के कामों में कभी जल्दबाजी नहीं की , जो कुछ किया वह समाज को साथ लेकर ही किया l उनका कहना था कि जब हम समाज के कल्याण के लिए प्रयत्न कर रहे हैं तो उसके साथ रहकर ही वैसा किया जा सकता है l
मालवीयजी स्वभाव से ही यथासंभव समझौते से कार्य को सिद्ध करने की नीति में विश्वास रखते थे , इसका परिणाम यह हुआ कि सामाजिक , धार्मिक और राजनीतिक क्षेत्र में उन्होंने बड़ी - बड़ी कठिन समस्याओं को सुलझा दिया l मालवीयजी लोकप्रिय थे , जनता उनके प्रति श्रद्धा रखती थी l
मालवीयजी ने सुधार के कामों में कभी जल्दबाजी नहीं की , जो कुछ किया वह समाज को साथ लेकर ही किया l उनका कहना था कि जब हम समाज के कल्याण के लिए प्रयत्न कर रहे हैं तो उसके साथ रहकर ही वैसा किया जा सकता है l
मालवीयजी स्वभाव से ही यथासंभव समझौते से कार्य को सिद्ध करने की नीति में विश्वास रखते थे , इसका परिणाम यह हुआ कि सामाजिक , धार्मिक और राजनीतिक क्षेत्र में उन्होंने बड़ी - बड़ी कठिन समस्याओं को सुलझा दिया l मालवीयजी लोकप्रिय थे , जनता उनके प्रति श्रद्धा रखती थी l
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