द्वितीय विश्वयुद्ध चल रहा था l महर्षि अरविन्द को एहसास हुआ कि अंग्रेजों से घ्रणा करने के कारण आश्रम के कुछ अन्तेवासी मन ही मन हिटलर की विजय की दुआ करने लगे हैं l आपस की चर्चाओं में भी कभी - कभी यह बात आ ही जाती है l श्री अरविन्द ने तत्कालीन शीर्ष कार्यकर्ताओं की शाम की एक बैठक में कहा ---- " जो लोग ऐसा कर रहे हैं , वे असुरता की विजय चाहते हैं l भारतीय मूल्य हमें ऐसा नहीं करने देंगे l ऐसे व्यक्ति जो हिटलर की विजय की इच्छा रखते हों , आश्रम से चले जाएँ l प्रश्न मूल्यों का है l हम परमात्मा की , आदर्शों की विजय चाहते हैं l "
श्री अरविन्द कहते थे ---- " युवाओं को ही नूतन विश्व का निर्माता बनना है l उन सभी को मैं आमंत्रित करता हूँ जो एक महानतम आदर्श के लिए सत्य को स्वीकारते हुए , श्रम करते हुए , मस्तिष्क और ह्रदय को स्वतंत्र रखते हुए संघर्ष कर सकते हैं l ये ही नवयुग लायेंगे l "
श्री अरविन्द कहते थे ---- " युवाओं को ही नूतन विश्व का निर्माता बनना है l उन सभी को मैं आमंत्रित करता हूँ जो एक महानतम आदर्श के लिए सत्य को स्वीकारते हुए , श्रम करते हुए , मस्तिष्क और ह्रदय को स्वतंत्र रखते हुए संघर्ष कर सकते हैं l ये ही नवयुग लायेंगे l "
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