' साख ' को बड़ी मेहनत से कमाया जाता है l जिसकी साख होती है , उसका कभी अहित नहीं होता है l महात्मा गाँधी के लिए अंग्रेजों ने ढेरों षडयंत्र किये , लेकिन कभी सफल नहीं हो पाए l
उन दिनों इलाहाबाद से एक पत्रिका निकलती थी ' चाँद ' l भगतसिंह की शहादत के बाद उसका एक फाँसी अंक निकला l इससे पत्रिका की संख्या 25 से 30 हजार हो गई l उस समय ( 1932-33 ) के हिसाब से यह एक बहुत बड़ी संख्या थी l
उसी के बाद के अंक में ' चाँद ' ने गांधीजी के खिलाफ एक कड़ी टिपण्णी लिख दी l इससे उनके प्रति भर्त्सना और अपमानजनक व्यवहार प्रकट हो रहा था l गांधीजी ने कुछ प्रत्युत्तर नहीं दिया l एक अंक में दो पंक्तियों की एक छोटी सी टिपण्णी उसके प्रतिवाद में गांधीजी ने ' हरिजन ' पत्रिका में लिख दी l परिणाम यह हुआ कि ' चाँद ' पत्रिका बंद हो गई l उसके ग्राहकों ने लेना ही बंद नहीं किया , बल्कि आक्रोश इतना उभरा कि पत्रिकाएं लौटा दीं , जबकि गांधीजी की टिपण्णी व्यक्तिगत नहीं , सैद्धांतिक थी l यह है किसी महामानव की साख का कमाल !
उन दिनों इलाहाबाद से एक पत्रिका निकलती थी ' चाँद ' l भगतसिंह की शहादत के बाद उसका एक फाँसी अंक निकला l इससे पत्रिका की संख्या 25 से 30 हजार हो गई l उस समय ( 1932-33 ) के हिसाब से यह एक बहुत बड़ी संख्या थी l
उसी के बाद के अंक में ' चाँद ' ने गांधीजी के खिलाफ एक कड़ी टिपण्णी लिख दी l इससे उनके प्रति भर्त्सना और अपमानजनक व्यवहार प्रकट हो रहा था l गांधीजी ने कुछ प्रत्युत्तर नहीं दिया l एक अंक में दो पंक्तियों की एक छोटी सी टिपण्णी उसके प्रतिवाद में गांधीजी ने ' हरिजन ' पत्रिका में लिख दी l परिणाम यह हुआ कि ' चाँद ' पत्रिका बंद हो गई l उसके ग्राहकों ने लेना ही बंद नहीं किया , बल्कि आक्रोश इतना उभरा कि पत्रिकाएं लौटा दीं , जबकि गांधीजी की टिपण्णी व्यक्तिगत नहीं , सैद्धांतिक थी l यह है किसी महामानव की साख का कमाल !
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