बुद्धि और शक्ति के साथ यदि संवेदना न हो तो ऐसी भावशून्यता और संवेदनहीनता के कारण समाज में आतंकवाद , दंगे , खून - खराबा बढ़ जाता है l
जब व्यक्ति स्वार्थ , अहंकार , ईर्ष्या - द्वेष जैसे दुर्गुणों से स्वयं को दूर रखेगा और उस के भीतर संवेदना जागेगी तभी वह प्राणिमात्र के कल्याण की बात सोच सकता है l
एक प्रसंग है ----- कौशाम्बी के राजगृह में कारू कसूरी नामक कसाई रहता था l वह पशुओं का मांस बेचकर अपनी जीविका चलाता था l जब राजगृह में बौद्ध संत आते तो वह उनके दर्शनों को जाता था l संत किसी भी प्रकार की हिंसा न करने की प्रेरणा दिया करते थे l परन्तु कारू कसूरी कहता --- मैं अपने पुरखों के धंधे को कैसे छोड़ दूँ ? यदि मैं हिंसा न करूँ तो खाऊंगा क्या ? '
जब कारू कसाई वृद्ध हो गया तो उसने तलवार अपने बेटे सुलस को सौंप दी l कसाइयों की पंचायत में सुलस से कहा गया कि कुलदेवी की प्रतिमा के समक्ष भैंसे की बलि दो l
सुलस का ह्रदय पशुओं के वध के समय उनकी छटपटाहट देख द्रवित हो उठता था l अत: उससे तलवार नहीं उठी l मुखिया ने दुबारा उससे कहा ---- " बेटे ! यह हमारे कुल की परंपरा है , देवी को प्रसन्न करने के लिए खून बहाना पड़ता है l " सुलस ने भैंसे की जगह अपने पैर में तलवार मार ली l पूछने पर सुलास बोला ---- ' यदि देवी को रक्त की चाहत है तो किसी निर्दोष का खून बहाने से बेहतर है कि वे मेरा ही रक्त स्वीकार कर लें l ' सुलस की बात सुनकर कसाई का ह्रदय द्रवित हो गया और उस दिन के बाद से उस कसाई के परिवार में पशुवध बंद कर दिया गया l '
यदि मनुष्य के भीतर करुणा, दया , सेवा , प्रेम जैसे भाव जाग्रत हो जाएँ तो आत्मीयता और अपनेपन का विस्तार होता है l
जब व्यक्ति स्वार्थ , अहंकार , ईर्ष्या - द्वेष जैसे दुर्गुणों से स्वयं को दूर रखेगा और उस के भीतर संवेदना जागेगी तभी वह प्राणिमात्र के कल्याण की बात सोच सकता है l
एक प्रसंग है ----- कौशाम्बी के राजगृह में कारू कसूरी नामक कसाई रहता था l वह पशुओं का मांस बेचकर अपनी जीविका चलाता था l जब राजगृह में बौद्ध संत आते तो वह उनके दर्शनों को जाता था l संत किसी भी प्रकार की हिंसा न करने की प्रेरणा दिया करते थे l परन्तु कारू कसूरी कहता --- मैं अपने पुरखों के धंधे को कैसे छोड़ दूँ ? यदि मैं हिंसा न करूँ तो खाऊंगा क्या ? '
जब कारू कसाई वृद्ध हो गया तो उसने तलवार अपने बेटे सुलस को सौंप दी l कसाइयों की पंचायत में सुलस से कहा गया कि कुलदेवी की प्रतिमा के समक्ष भैंसे की बलि दो l
सुलस का ह्रदय पशुओं के वध के समय उनकी छटपटाहट देख द्रवित हो उठता था l अत: उससे तलवार नहीं उठी l मुखिया ने दुबारा उससे कहा ---- " बेटे ! यह हमारे कुल की परंपरा है , देवी को प्रसन्न करने के लिए खून बहाना पड़ता है l " सुलस ने भैंसे की जगह अपने पैर में तलवार मार ली l पूछने पर सुलास बोला ---- ' यदि देवी को रक्त की चाहत है तो किसी निर्दोष का खून बहाने से बेहतर है कि वे मेरा ही रक्त स्वीकार कर लें l ' सुलस की बात सुनकर कसाई का ह्रदय द्रवित हो गया और उस दिन के बाद से उस कसाई के परिवार में पशुवध बंद कर दिया गया l '
यदि मनुष्य के भीतर करुणा, दया , सेवा , प्रेम जैसे भाव जाग्रत हो जाएँ तो आत्मीयता और अपनेपन का विस्तार होता है l
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