पुराणों में एक कथा आती है ------ पहले भगवन सर्वत्र सहज सुलभ थे l लोग उनसे मिलकर , अपनी कष्ट - समस्याएं सुनाकर समाधान पा लेते थे l लोग निस्वार्थ भाव से उनकी छवि का दर्शन करते और अपने जीवन को धन्य बनाते l फिर लोगों में स्वार्थ भाव जगा , वासना , तृष्णा, आवश्यकताएं बढ़ती गईं l पहले भगवान को भक्त घेरे रहते थे अब स्वार्थी , लालची और मनोकामना पूरी कराने वालों की भी भीड़ बढती गई l
भगवान ने अपने सभासदों से पूछा --- कोई ऐसा गुप्त स्थान बताएं जहाँ मैं थोड़ी देर विश्राम कर लूँ l" कहीं कोई स्थान नहीं मिला , हर जगह मनुष्य अपनी कामनाएं लेकर पहुँच जाता है l अंत में नारद जी की सलाह पर भगवान् मनुष्य के ह्रदय में जा छुपे , जो अत्यंत पवित्र और कोलाहल रहित है l
लेकिन अब स्थिति विकट हो गई l लोगों के ह्रदय में संवेदना सूख गई , ईर्ष्या - द्वेष , छल - कपट से ह्रदय भी मलिन हो गया l स्वार्थी मनुष्य ने ईश्वर के रहने का शांत - सुन्दर, पवित्र स्थान भी छीन लिया और अब उनके लिए चूने - मिटटी का घर बनाने के लिए लड़ रहे हैं , मरने - मारने पर उतारू हैं l अब भगवान ढूंढ रहे हैं --- सच्चे इनसान को !
भगवान ने अपने सभासदों से पूछा --- कोई ऐसा गुप्त स्थान बताएं जहाँ मैं थोड़ी देर विश्राम कर लूँ l" कहीं कोई स्थान नहीं मिला , हर जगह मनुष्य अपनी कामनाएं लेकर पहुँच जाता है l अंत में नारद जी की सलाह पर भगवान् मनुष्य के ह्रदय में जा छुपे , जो अत्यंत पवित्र और कोलाहल रहित है l
लेकिन अब स्थिति विकट हो गई l लोगों के ह्रदय में संवेदना सूख गई , ईर्ष्या - द्वेष , छल - कपट से ह्रदय भी मलिन हो गया l स्वार्थी मनुष्य ने ईश्वर के रहने का शांत - सुन्दर, पवित्र स्थान भी छीन लिया और अब उनके लिए चूने - मिटटी का घर बनाने के लिए लड़ रहे हैं , मरने - मारने पर उतारू हैं l अब भगवान ढूंढ रहे हैं --- सच्चे इनसान को !
No comments:
Post a Comment