इन्द्र जी कहते थे ---- " इस समय आवश्यकता इस बात की है कि सरकारी कर्मचारियों , मंत्रीमंडल और पत्रकारों तथा जनता सबका चरित्र का स्तर ऊँचा हो l यदि ऐसा न होगा तो स्वराज्य ताश के पत्तों के मकान की तरह ढह जायेगा l "
इस अनिष्टकारी स्थिति से परित्राण पाने का मार्ग भी उन्होंने सुझाया ---- " शिक्षण , द्रष्टान्त और प्रचार से हम स्थिति को सुधार सकते हैं l शिक्षा में सुधार हुआ ही नहीं है l नैतिक और आचरण सम्बन्धी बातों के प्रचार की आवश्यकता है l सबसे बड़ी बात है द्रष्टान्त की l जनता वही करेगी जो बड़े करेंगे l त्याग ऊपर से ही आरम्भ होना चाहिए , इसके लिए उपदेश निरर्थक है l "
' आज देश में सबसे बड़ी आवश्यकता चरित्र निर्माण और नैतिक जागरण की है l
इन्द्र जी निर्भीक पत्रकार और निष्ठावान देशभक्त थे l उनके पत्रों ने राष्ट्रीय जागरण का जो कार्य किया वह अपने आप में अनूठा है l आज तो पत्रकारिता के क्षेत्र में स्वतंत्र विचारों की हत्या हो गई है l यह कला आज पूंजीपतियों की क्रीतदासी बनती जा रही है l
इन्द्र जी का जीवन पत्रकारों , आचार्यों और समाज सेवियों के लिए आदर्श है l
इस अनिष्टकारी स्थिति से परित्राण पाने का मार्ग भी उन्होंने सुझाया ---- " शिक्षण , द्रष्टान्त और प्रचार से हम स्थिति को सुधार सकते हैं l शिक्षा में सुधार हुआ ही नहीं है l नैतिक और आचरण सम्बन्धी बातों के प्रचार की आवश्यकता है l सबसे बड़ी बात है द्रष्टान्त की l जनता वही करेगी जो बड़े करेंगे l त्याग ऊपर से ही आरम्भ होना चाहिए , इसके लिए उपदेश निरर्थक है l "
' आज देश में सबसे बड़ी आवश्यकता चरित्र निर्माण और नैतिक जागरण की है l
इन्द्र जी निर्भीक पत्रकार और निष्ठावान देशभक्त थे l उनके पत्रों ने राष्ट्रीय जागरण का जो कार्य किया वह अपने आप में अनूठा है l आज तो पत्रकारिता के क्षेत्र में स्वतंत्र विचारों की हत्या हो गई है l यह कला आज पूंजीपतियों की क्रीतदासी बनती जा रही है l
इन्द्र जी का जीवन पत्रकारों , आचार्यों और समाज सेवियों के लिए आदर्श है l
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