वर्ष 1905 जब देश पर लार्ड कर्जन का कूटनीति पूर्ण शासन चल रहा था l वे जब से भारत के वायसराय बन कर आये थे , तब से यहाँ की जन - जागृति को दबाने की तरकीबें कर रहे थे और उनका अंतिम प्रहार था -- 19 अक्टूबर 1905 को बंगाल का विभाजन l उस समय जनता में विदेशी शासकों के प्रति विद्रोह का भाव अपने चरम बिन्दु पर था l देश भर में आन्दोलन चला l ज्यों - ज्यों आन्दोलन गति पकड़ता गया सरकार का दमन - चक्र भी क्रूर और दानवी होता गया l
' जन - भावनाओं का दमन वह भी आतंक के बल पर , कोई भी सरकार सफल नहीं रही है l इतिहास इस बात का साक्षी है l मन की पाशविक प्रक्रिया विद्रोह की आग को कुछ क्षणों के लिए भले ही कम कर दे , परन्तु वह अन्दर ही अन्दर सुलगती रहती है और जब विस्फोट होता है तो बड़ी से बड़ी संहारक शक्तियां और साम्राज्य ध्वस्त हो जाते हैं l
शताब्दियों से भारतीय समाज पर किये जाने वाले अत्याचारों की भी प्रतिक्रिया अन्दर ही अन्दर सुलगती रही और बंग - भंग योजना का प्रतिरोध करते समय फूट पड़ी l उस समय देश का बच्चा - बच्चा आततायी के सामने खुल कर मुकाबला करने के लिए आ खड़ा हुआ l
' जन - भावनाओं का दमन वह भी आतंक के बल पर , कोई भी सरकार सफल नहीं रही है l इतिहास इस बात का साक्षी है l मन की पाशविक प्रक्रिया विद्रोह की आग को कुछ क्षणों के लिए भले ही कम कर दे , परन्तु वह अन्दर ही अन्दर सुलगती रहती है और जब विस्फोट होता है तो बड़ी से बड़ी संहारक शक्तियां और साम्राज्य ध्वस्त हो जाते हैं l
शताब्दियों से भारतीय समाज पर किये जाने वाले अत्याचारों की भी प्रतिक्रिया अन्दर ही अन्दर सुलगती रही और बंग - भंग योजना का प्रतिरोध करते समय फूट पड़ी l उस समय देश का बच्चा - बच्चा आततायी के सामने खुल कर मुकाबला करने के लिए आ खड़ा हुआ l
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