प्राय: ऐसा देखा जाता है कि जब कोई साधारण स्थिति का मनुष्य संयोगवश ऐसा उच्च स्थान पा जाता है तो वह अपनी अवस्था को भूलकर अभिमानी और स्वार्थी बन जाता है और अपनी सम्पति और साधनों का स्वयं ही अधिकाधिक उपयोग करना चाहता है l ऐसे व्यक्ति निश्चित ही बड़े संकीर्ण और अदूरदर्शी होते हैं l वे इतना नहीं सोच पाते कि सौभाग्य की स्थिति को अविचल या अटल समझ लेना बुद्धिमानी नहीं है l न मालूम कब वह बादल की छाया की तरह विलीन हो जाये l इसलिए स्वहित की बात यही है कि ऐसा अवसर पाकर उसका सदुपयोग अधिकाधिक परोपकार और दूसरों के साथ भलाई के लिए ही किया जाये , जिससे प्रत्येक परिवर्तित दशा में आत्मसंतोष बना रहे l
महारानी अहिल्याबाई का चरित्र इस द्रष्टि से आदर्श था l एक साधारण ग्रामीण कन्या से वे इंदौर की महारानी बनी l इतना बड़ा दर्जा पा लेने पर भी उनमे अहंकार नहीं था l उन्हें जो कुछ धन , मान मिला उसका उपयोग उन्होंने सदैव दूसरों के हित के लिए किया l दीन - हीन , विधवाएं , अनाथ , निर्धन व्यक्ति उनकी करुणा के मुख्य आधार थे l धन और सत्ता के सदुपयोग का उन्होंने एक ऐसा महान आदर्श उपस्थित किया जिसकी गुण गाथा हमेशा गाई जाएगी l यदि हमारे अनेक छत्रधारी इस पथ पर चले होते तो यह पृथ्वी क्लेश और कष्टों के बजाय आनन्द और शान्ति का आगार बनी दिखाई पड़ती l
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