युगों की गुलामी के बाद हम आजाद हो गए , स्वतंत्र हो गए l अपने ऊपर हुए जुल्मों के लिए सदा दूसरों को ही दोष दिया , अपने भीतर नहीं झाँका , अपनी कमियों को नहीं देखा l युगों से नारी पर अत्याचार हुए ---- सती - प्रथा --- पति की मृत्यु के बाद पत्नी को पति के साथ जीवित जला दिया जाता था l बाल - विधवा --- पति को देखा ही नहीं और उसकी मृत्यु होने पर विधवा हो गई , फिर जिन्दगी भर समाज के जुल्म सहे l
अब इस आधुनिक युग में कन्या - भ्रूण - हत्या , दहेज के लिए हत्या , घरेलू हिंसा , विभिन्न कार्यालयों में महिला - उत्पीड़न l इन सबसे भी जी नहीं भरा तो छोटी - छोटी नादान बच्चियों पर जुल्म l यह सब अत्याचार किसी विदेशी ने नहीं किए l अपने ही लोगों ने सताया है l
स्वतंत्रता का दुरूपयोग न हो इसके लिए हमें जागरूक होने की जरुरत है l हर अपराध की शुरुआत परिवार से होती है l चोर , जुआरी , शराबी पैसों की जरुरत होने पर सबसे पहले अपने घर में ही चोरी करते है , फिर मित्रों व रिश्तेदारों के यहाँ चोरी करते हैं , अपने हुनर में माहिर हो जाने पर वे समाज में बड़े स्तर पर चोरी - डकैती करते हैं l इसी तरह बड़े - बड़े अपराधी , दुष्कर्मी सभी अपने अपराध की शुरुआत परिवार से ही करते हैं l लालच , वासना , क्रोध में आदमी अँधा हो जाता है , अपने पराये का भेद भूल जाता है l परिवार के लोग समाज में अपनी इज्जत को बचाए रखने के लिए चुप रहते हैं , उनकी यही चुप्पी , उनकी उदासीनता ऐसे अपराधी को बढ़ावा देती है l
अपने स्वार्थ , लालच आदि अनेक कारणों से जब लोग किसी अपराधी का समर्थन करते हैं , उसे संरक्षण देते हैं तो इसका अर्थ है कि वे उसके द्वारा किये जाने वाले अपराध का समर्थन कर रहे हैं , उसकी दुष्प्रवृति को बढ़ावा दे रहे हैं l आज के समय में हर व्यक्ति स्वतंत्र है , अपने मन से काम करने के लिए अपने ढंग से जीने के लिए l लेकिन हमें जागरूक होना होगा क्योंकि अपनों को लूटना ज्यादा आसान होता है , हर अपराधी यह सरल काम पहले करता है l बस, उसके तरीके , उसका रूप अलग हो सकता है -- कभी धोखा देकर , कभी स्वयं को बहुत अच्छा दिखाकर , कभी स्वयं परदे की आड़ में रहकर दूसरों को माध्यम से अपने ही मित्रों , सगे - संबंधी को लूटना l ईर्ष्या - द्वेष , लालच, कामना - वासना ऐसे दुर्गुण हैं जिनके वशीभूत होकर व्यक्ति अपने हितैषी का भी अहित करने से नहीं चूकता l
अब इस आधुनिक युग में कन्या - भ्रूण - हत्या , दहेज के लिए हत्या , घरेलू हिंसा , विभिन्न कार्यालयों में महिला - उत्पीड़न l इन सबसे भी जी नहीं भरा तो छोटी - छोटी नादान बच्चियों पर जुल्म l यह सब अत्याचार किसी विदेशी ने नहीं किए l अपने ही लोगों ने सताया है l
स्वतंत्रता का दुरूपयोग न हो इसके लिए हमें जागरूक होने की जरुरत है l हर अपराध की शुरुआत परिवार से होती है l चोर , जुआरी , शराबी पैसों की जरुरत होने पर सबसे पहले अपने घर में ही चोरी करते है , फिर मित्रों व रिश्तेदारों के यहाँ चोरी करते हैं , अपने हुनर में माहिर हो जाने पर वे समाज में बड़े स्तर पर चोरी - डकैती करते हैं l इसी तरह बड़े - बड़े अपराधी , दुष्कर्मी सभी अपने अपराध की शुरुआत परिवार से ही करते हैं l लालच , वासना , क्रोध में आदमी अँधा हो जाता है , अपने पराये का भेद भूल जाता है l परिवार के लोग समाज में अपनी इज्जत को बचाए रखने के लिए चुप रहते हैं , उनकी यही चुप्पी , उनकी उदासीनता ऐसे अपराधी को बढ़ावा देती है l
अपने स्वार्थ , लालच आदि अनेक कारणों से जब लोग किसी अपराधी का समर्थन करते हैं , उसे संरक्षण देते हैं तो इसका अर्थ है कि वे उसके द्वारा किये जाने वाले अपराध का समर्थन कर रहे हैं , उसकी दुष्प्रवृति को बढ़ावा दे रहे हैं l आज के समय में हर व्यक्ति स्वतंत्र है , अपने मन से काम करने के लिए अपने ढंग से जीने के लिए l लेकिन हमें जागरूक होना होगा क्योंकि अपनों को लूटना ज्यादा आसान होता है , हर अपराधी यह सरल काम पहले करता है l बस, उसके तरीके , उसका रूप अलग हो सकता है -- कभी धोखा देकर , कभी स्वयं को बहुत अच्छा दिखाकर , कभी स्वयं परदे की आड़ में रहकर दूसरों को माध्यम से अपने ही मित्रों , सगे - संबंधी को लूटना l ईर्ष्या - द्वेष , लालच, कामना - वासना ऐसे दुर्गुण हैं जिनके वशीभूत होकर व्यक्ति अपने हितैषी का भी अहित करने से नहीं चूकता l
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