पारिवारिक व्यवस्था परस्पर विश्वास और त्याग पर टिकी है , लेकिन लालच , स्वार्थ , ईर्ष्या - द्वेष , कामना - वासना ने मनुष्य के भीतर छुपे राक्षस को जगा दिया है l इस कारण यह व्यवस्था चरमराने लगी है l भूमि - सम्पति के झगड़े, महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा, यह सब परिवार में ही होता है , इसमें विजातीय या विधर्मी नहीं आते l कोई महिला अकेली है , कमजोर है तो उसकी सम्पति उसके परिवार , रिश्तेदार ही हड़प लेते हैं l
एक ही बिरादरी के लोगों में ईर्ष्या और आपसी दुश्मनी इस कदर बढ़ जाती है कि वे ' अपनों ' को ही परेशान करने के लिए गैरों का , विधर्मियों का सहारा लेते हैं l आज व्यक्ति में दोगलापन है , शराफत और सज्जनता के मुखौटे के पीछे कितनी कालिक है ! इसी को समझने और सतर्क रहने की जरुरत है l
एक ही बिरादरी के लोगों में ईर्ष्या और आपसी दुश्मनी इस कदर बढ़ जाती है कि वे ' अपनों ' को ही परेशान करने के लिए गैरों का , विधर्मियों का सहारा लेते हैं l आज व्यक्ति में दोगलापन है , शराफत और सज्जनता के मुखौटे के पीछे कितनी कालिक है ! इसी को समझने और सतर्क रहने की जरुरत है l
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