रुसी साहित्यकार एन्टन चेखव का लिखा नाटक ' वार्ड न. ६ ' में इस तथ्य को उभारा गया है कि हिंसा और अत्याचार को रोकने के लिए निष्क्रिय विरोध , उपेक्षा और उदासीनता से काम नहीं चलता , उसे रोकने के लिए अदम्य और कठोर संघर्ष की आवश्यकता है तभी उसमे सफल हुआ जा सकता है l बुद्धिजीवी वर्ग की नपुंसक अकर्मण्यता पर तीव्र प्रहार करने वाला यह नाटक जब लेनिन ने देखा तो वे इतने व्यग्र हो गए कि अपने स्थान पर बैठ न सके l
' वार्ड न. ६ ' नाटक पागलखाने की पृष्ठभूमि पर लिखा गया नाटक है ----- डा. रैगिन पागलों के अस्पताल के सुपरिटेंडेट हैं l उनकी आकांक्षा है अस्पताल में सुधार की परन्तु प्रतिकूलताओं से लड़ने का उनमे साहस नहीं है l वह अस्पताल की व्यवस्था और सिस्टम में कोई सुधार नहीं कर पाते इस कारण अस्पताल में अव्यवस्था बढती गई और एक दिन वहां का जमादार अस्पताल का संरक्षक बन बैठा l वह रोगियों और कर्मचारियों से बहुत दुर्व्यवहार करता , उन्हें मारता - पीटता l जब रोगी व कर्मचारी शिकायत लेकर डा. रैगिन के पास जाते तो वह उन्हें सैद्धांतिक उपदेश देने लगता कि अपनी सहन शक्ति बढ़ाओ l इस पर उनमे घंटों तक विवाद चलता l इसमें बुद्धिजीवी वर्ग के डा. रैगिन की निष्क्रियता और उदासीनता तथा कर्मचारियों द्वारा हिंसा व अत्याचार के विरुद्ध कठोर संघर्ष और स्वाभिमान पूर्ण प्रतिरोध की भावना स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त होती है l यह विवाद बढ़ता ही चला गया और एक दिन ऐसा आता है कि डा. रैगिन को पागल और विक्षिप्त करार देकर उसी पागलखाने के वार्ड न. ६ में भर्ती करा दिया जाता है l
चेखव की रचनाओं में सत्य को जिस बुलंदगी से कहा गया है , बहुत कम साहित्यकार ऐसा करने का साहस कर सके हैं l
' वार्ड न. ६ ' नाटक पागलखाने की पृष्ठभूमि पर लिखा गया नाटक है ----- डा. रैगिन पागलों के अस्पताल के सुपरिटेंडेट हैं l उनकी आकांक्षा है अस्पताल में सुधार की परन्तु प्रतिकूलताओं से लड़ने का उनमे साहस नहीं है l वह अस्पताल की व्यवस्था और सिस्टम में कोई सुधार नहीं कर पाते इस कारण अस्पताल में अव्यवस्था बढती गई और एक दिन वहां का जमादार अस्पताल का संरक्षक बन बैठा l वह रोगियों और कर्मचारियों से बहुत दुर्व्यवहार करता , उन्हें मारता - पीटता l जब रोगी व कर्मचारी शिकायत लेकर डा. रैगिन के पास जाते तो वह उन्हें सैद्धांतिक उपदेश देने लगता कि अपनी सहन शक्ति बढ़ाओ l इस पर उनमे घंटों तक विवाद चलता l इसमें बुद्धिजीवी वर्ग के डा. रैगिन की निष्क्रियता और उदासीनता तथा कर्मचारियों द्वारा हिंसा व अत्याचार के विरुद्ध कठोर संघर्ष और स्वाभिमान पूर्ण प्रतिरोध की भावना स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त होती है l यह विवाद बढ़ता ही चला गया और एक दिन ऐसा आता है कि डा. रैगिन को पागल और विक्षिप्त करार देकर उसी पागलखाने के वार्ड न. ६ में भर्ती करा दिया जाता है l
चेखव की रचनाओं में सत्य को जिस बुलंदगी से कहा गया है , बहुत कम साहित्यकार ऐसा करने का साहस कर सके हैं l
No comments:
Post a Comment