रामकृष्ण परमहंस कहा करते थे ---चील कितनी ही ऊपर ऊँचाइयों पर उड़ती रहे फिर भी उसकी द्रष्टि धरती पर पड़े मृत जानवर पर ही लगी रहती है l इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि उसका शरीर उतंग ऊँचाइयों पर उड़ रहा है , पर मन फिर भी जमीन पर अटका रहता है , मांस के लोथड़े तलाशता रहता है l यह मन का स्वभाव है , उसे अधोगामी बनने में रस आता है l मन का परिष्कार जरुरी है l
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