दण्ड का भय दिखाकर लोभ , लालच , भ्रष्टाचार आदि मनुष्य की दुष्प्रवृतियों को बहुत देर तक रोका नहीं जा सकता l कामना , वासना , तृष्णा में व्यक्ति अन्धा हो जाता है और इसकी पूर्ति के लिए वह शिक्षा , चिकित्सा , धार्मिक स्थल , वन , कृषि , रिश्ते - नाते ------ कोई भी क्षेत्र हो , वह अतिक्रमण करने से चूकता नहीं है l जब तक मनुष्य स्वयं न सुधरना चाहे , उसे संसार की कोई ताकत सुधार नहीं सकती , इसलिए विचार - क्रांति अनिवार्य है l
एक कथा है ----- एक दर्जी बीमार पड़ा , मरने की नौबत आ गई l एक रात उसने सपना देखा कि वह मर गया और कब्र में दफनाया जा रहा है l वह बड़ा हैरान हुआ यह देखकर कि कब्र के चारों और रंग - बिरंगी झंडियाँ लगी हैं l उसने पास खड़े फरिश्ते से पूछा कि ये झंडियाँ क्यों लगी हैं ? फरिश्ते ने कहा --- " जिन - जिन के कपड़े तुमने जीवन भर चुराए , उनके प्रतीक के रूप में ये झंडियाँ लगी हैं l परमात्मा इनसे तुम्हारा हिसाब - किताब करेगा l " झंडियाँ अनगिनत थीं l घबराहट इतनी बड़ी कि दरजी की आँख खुल गई l कुछ दिन बाद जब वह ठीक हुआ तो दुकान पर आया l उसने अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को हिदायत दी कि, देखो मुझे अपने पर भरोसा नहीं है , जब भी कीमती कपड़ा आता है मैं ललचा जाता हूँ , इस पुरानी आदत को बुढ़ापे में बदलना कठिन है l तुम सब एक ख्याल रखना कि जब भी मुझे कपड़ा चुराते देखो तो बस इतना भर कह देना --- " उस्तादजी ! झंडी ! " स मैं सचेत हो जाऊँगा l
शिष्यों ने पूछा --- ' इसका मतलब ? ' उसने कहा -- तुम इन सबमे मत उलझो , मेरे लिए बस इतना इशारा काफी है l
एक सप्ताह तक तो शिष्य उस्ताद को झण्डी की याद दिलाकर रोके रहे किन्तु इसके बाद बड़ी मुसीबत हो गई l किसी ग्राहक का विदेशी सूट सिलने आया l उस्ताद ने पीठ फेरी और लगा चोरी करने l शिष्यों ने टोका --- उस्तादजी ! झण्डी ! बार - बार सुनने पर उस्ताद चिल्लाया --- " बंद करो बकवास l अपना काम करो l तुम्हे पता भी है , वहां इस रंग की झण्डी थी ही नहीं l यदि इतनी झंडियाँ लगी हैं तो एक और झण्डी लग जाएगी l "
उथले नियम जीवन को दिशा नहीं दे पाते l
एक कथा है ----- एक दर्जी बीमार पड़ा , मरने की नौबत आ गई l एक रात उसने सपना देखा कि वह मर गया और कब्र में दफनाया जा रहा है l वह बड़ा हैरान हुआ यह देखकर कि कब्र के चारों और रंग - बिरंगी झंडियाँ लगी हैं l उसने पास खड़े फरिश्ते से पूछा कि ये झंडियाँ क्यों लगी हैं ? फरिश्ते ने कहा --- " जिन - जिन के कपड़े तुमने जीवन भर चुराए , उनके प्रतीक के रूप में ये झंडियाँ लगी हैं l परमात्मा इनसे तुम्हारा हिसाब - किताब करेगा l " झंडियाँ अनगिनत थीं l घबराहट इतनी बड़ी कि दरजी की आँख खुल गई l कुछ दिन बाद जब वह ठीक हुआ तो दुकान पर आया l उसने अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को हिदायत दी कि, देखो मुझे अपने पर भरोसा नहीं है , जब भी कीमती कपड़ा आता है मैं ललचा जाता हूँ , इस पुरानी आदत को बुढ़ापे में बदलना कठिन है l तुम सब एक ख्याल रखना कि जब भी मुझे कपड़ा चुराते देखो तो बस इतना भर कह देना --- " उस्तादजी ! झंडी ! " स मैं सचेत हो जाऊँगा l
शिष्यों ने पूछा --- ' इसका मतलब ? ' उसने कहा -- तुम इन सबमे मत उलझो , मेरे लिए बस इतना इशारा काफी है l
एक सप्ताह तक तो शिष्य उस्ताद को झण्डी की याद दिलाकर रोके रहे किन्तु इसके बाद बड़ी मुसीबत हो गई l किसी ग्राहक का विदेशी सूट सिलने आया l उस्ताद ने पीठ फेरी और लगा चोरी करने l शिष्यों ने टोका --- उस्तादजी ! झण्डी ! बार - बार सुनने पर उस्ताद चिल्लाया --- " बंद करो बकवास l अपना काम करो l तुम्हे पता भी है , वहां इस रंग की झण्डी थी ही नहीं l यदि इतनी झंडियाँ लगी हैं तो एक और झण्डी लग जाएगी l "
उथले नियम जीवन को दिशा नहीं दे पाते l
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