' आवश्यकता से ज्यादा एकत्रित सम्पदा स्वयं के लिए और परिवार के लिए पतन का कारण बनती है I ' आज के समय में भोग - विलास का जीवन जीना और उसके लिए हर तरह के अनैतिक प्रयासों में निरत रहना ही लोगों की मानसिकता है I इस कारण जीवन मूल्य तो गिरते ही हैं , शोषण , लूट - खसोट , , अपराध , आर्थिक विषमता , आतंक , अपराध , लाइलाज बीमारियाँ आदि समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं
एक शिष्य ने गुरु से पूछा ---- " सम्पति का सदुपयोग न करने पर क्या होता है I "
गुरु ने उत्तर दिया --- वत्स ! तुमने रेशम का कीड़ा देखा है ? एक रेशम का कीड़ा रेशम इकट्ठी कर के भारी - भरकम हो जाता है और अपने ही बनाये जाल में जकड़कर मर जाता है I उसके पास की जमा पूंजी दूसरों का जी ललचाती है और वे लालची उसके ही जीवन का नाश करते हैं I
धन का सदुपयोग न करने वाले सम्पतिवान भी उस रेशम के कीड़े की तरह हैं , जो स्वयं तो आवश्यकता से अधिक सम्पति का उपयोग कर नहीं पाते, परन्तु इसके कारण मात्र लालचियों और दुष्टों के भरण - पोषण का माध्यम बनते हैं I
एक शिष्य ने गुरु से पूछा ---- " सम्पति का सदुपयोग न करने पर क्या होता है I "
गुरु ने उत्तर दिया --- वत्स ! तुमने रेशम का कीड़ा देखा है ? एक रेशम का कीड़ा रेशम इकट्ठी कर के भारी - भरकम हो जाता है और अपने ही बनाये जाल में जकड़कर मर जाता है I उसके पास की जमा पूंजी दूसरों का जी ललचाती है और वे लालची उसके ही जीवन का नाश करते हैं I
धन का सदुपयोग न करने वाले सम्पतिवान भी उस रेशम के कीड़े की तरह हैं , जो स्वयं तो आवश्यकता से अधिक सम्पति का उपयोग कर नहीं पाते, परन्तु इसके कारण मात्र लालचियों और दुष्टों के भरण - पोषण का माध्यम बनते हैं I
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