महात्मा गाँधी के जीवन में ऐसे कई प्रसंग आये , जब उन्हें अपने सिद्धांतों की रक्षा के लिए द्रढ़ता बरतने की आवश्यकता हुई l परन्तु गांधीजी बिना किसी प्रकार की कटुता व्यक्त किये , अपने सिद्धांतों पर दृढ़ रहे l---- उनके विदेशी मित्रों ने एक बार प्रीतिभोज का आयोजन किया l उस समय गांधीजी विदेश में पढ़ रहे थे l भोज में मांस भी पकाया गया और परोसा जाने लगा , तो उन्होंने मना करते हुए कहा कि मैं इसका इस्तेमाल नहीं करता l मित्रों ने समझाया कि इसमें क्या नुकसान है I डाक्टर लोग तो इसे स्वास्थ्य वर्धक बताते हैं l गांधीजी ने कहा --- " परन्तु यह मेरा व्रत है कि मैं कभी मांसाहार नहीं करूँगा I "
मित्र वाद विवाद पर उतर आये और तर्क देने लगे l बहुत संभव था कि गाँधीजी भी वाद विवाद करने लगते I मित्रों ने यह कहकर तर्क युद्ध छेड़ने का प्रयास किया कि उस व्रत की क्या उपयोगिता जिससे लाभदायक कार्यों को न किया जा सके I तो गांधीजी ने यह कहकर विवाद को एक ही वाक्य में समाप्त कर दिया किया कि----- " इस समय मैं व्रत की आवश्यकता , उपयोगिता का बखान नहीं कर रहा हूँ , बल्कि मेरे लिए अपनी माँ को दिया गया वह वचन ही काफी है , जिसमे मैंने मांस न खाने और शराब न छूने का संकल्प लिया था l "
गांधीजी के मित्र वहीँ चुप रह गए I वहां सिद्धांत रक्षा भी हो गई और कटुता भी उत्पन्न न हुई I
मित्र वाद विवाद पर उतर आये और तर्क देने लगे l बहुत संभव था कि गाँधीजी भी वाद विवाद करने लगते I मित्रों ने यह कहकर तर्क युद्ध छेड़ने का प्रयास किया कि उस व्रत की क्या उपयोगिता जिससे लाभदायक कार्यों को न किया जा सके I तो गांधीजी ने यह कहकर विवाद को एक ही वाक्य में समाप्त कर दिया किया कि----- " इस समय मैं व्रत की आवश्यकता , उपयोगिता का बखान नहीं कर रहा हूँ , बल्कि मेरे लिए अपनी माँ को दिया गया वह वचन ही काफी है , जिसमे मैंने मांस न खाने और शराब न छूने का संकल्प लिया था l "
गांधीजी के मित्र वहीँ चुप रह गए I वहां सिद्धांत रक्षा भी हो गई और कटुता भी उत्पन्न न हुई I
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