श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान अपना परिचय देते हुए कहते हैं कि को ---- ' मैं काल हूँ l ' मनुष्य एक निश्चित समय व स्थान पर जो कर्म करता है , कभी न कभी उसका परिणाम अवश्य प्रस्तुत होता है l व्यक्तिगत जीवन में यदि कर्म अशुभ है तो काल रोग , शोक , पीड़ा व पतन बनकर प्रकट होता है l यदि सामूहिक जीवन में अशुभ कर्म होता है तो काल प्राकृतिक आपदाओं , युद्ध का रूप लेकर आता है l
महाभारत के महायुद्ध में कुरुक्षेत्र में परमेश्वर स्वयं दंड लेकर प्रकट हुए l वे अर्जुन से कहते हैं --- तुम इन प्रतिपक्षी योद्धाओं को मारो या न मारो , पर ये मरेंगे अवश्य l इन्हें मारने का माध्यम तुम बनो या फिर कोई और , इनका मरना सुनिश्चित है क्योंकि व्यक्ति अथवा समूह को कोई घटनाक्रम नहीं मारते, उसे मारते हैं उसके कर्म l
भीष्म एवं द्रोंण अपने व्यक्तिगत जीवन में भले ही अच्छे हों , पर दुर्योधन के अनगिनत दुष्कर्मों के साथ उनकी मौन स्वीकृति ने उन्हें दंड का भागीदार बना दिया है l यही स्थिति अन्यों की है l कर्मों का परिणाम काल तय करता है l
महाभारत के महायुद्ध में कुरुक्षेत्र में परमेश्वर स्वयं दंड लेकर प्रकट हुए l वे अर्जुन से कहते हैं --- तुम इन प्रतिपक्षी योद्धाओं को मारो या न मारो , पर ये मरेंगे अवश्य l इन्हें मारने का माध्यम तुम बनो या फिर कोई और , इनका मरना सुनिश्चित है क्योंकि व्यक्ति अथवा समूह को कोई घटनाक्रम नहीं मारते, उसे मारते हैं उसके कर्म l
भीष्म एवं द्रोंण अपने व्यक्तिगत जीवन में भले ही अच्छे हों , पर दुर्योधन के अनगिनत दुष्कर्मों के साथ उनकी मौन स्वीकृति ने उन्हें दंड का भागीदार बना दिया है l यही स्थिति अन्यों की है l कर्मों का परिणाम काल तय करता है l
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