नवयुवकों को स्वार्थ एवं ईर्ष्या से बचे रहने की सलाह देते हुए स्वामी विवेकानंद कहते हैं ----- " केवल वही व्यक्ति सब की अपेक्षा उत्तम रूप से कार्य करता है , जो पूर्णतया निस्स्वार्थी है , जिसे न तो धन की लालसा है , न कीर्ति की और न एनी किसी वस्तु की l मनुष्य जब ऐसा करने में समर्थ हो जाता है तब वह भी एक बुद्ध स्तर का बन जाता है और उसके भीतर एक ऐसी शक्ति प्रकट होती है , जो संसार की अवस्था को सम्पूर्ण रूप से परिवर्तित कर सकती है l "
स्वामीजी कहते हैं ---- लेकिन इसके लिए तुम पहले से ही बड़ी - बड़ी योजनायें न बनाओ , धीरे - धीरे कार्य प्रारम्भ करो , जिस जमीन पर खड़े हो , उसे अच्छी तरह से पकड़ कर क्रमशः ऊँचे चढ़ने का प्रयत्न करो l एकाएक मंजिल को पाने का प्रयास मत करो l '
उन्होंने कहा --- " यदि भारत का भविष्य उज्ज्वल करना है तो इसके लिए आवश्यकता है संगठन की , शक्ति संग्रह की और बिखरी हुई इच्छा शक्ति को एकत्र कर उसमे समन्वय लाने की l इसलिए तुम सब एक मत , एक विचार के बन जाओ l '
स्वामीजी कहते हैं ---- लेकिन इसके लिए तुम पहले से ही बड़ी - बड़ी योजनायें न बनाओ , धीरे - धीरे कार्य प्रारम्भ करो , जिस जमीन पर खड़े हो , उसे अच्छी तरह से पकड़ कर क्रमशः ऊँचे चढ़ने का प्रयत्न करो l एकाएक मंजिल को पाने का प्रयास मत करो l '
उन्होंने कहा --- " यदि भारत का भविष्य उज्ज्वल करना है तो इसके लिए आवश्यकता है संगठन की , शक्ति संग्रह की और बिखरी हुई इच्छा शक्ति को एकत्र कर उसमे समन्वय लाने की l इसलिए तुम सब एक मत , एक विचार के बन जाओ l '
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