केवल शारीरिक द्रष्टि से आजाद होना पर्याप्त नहीं है l यदि कोई व्यक्ति , समाज अथवा देश अपने को गुलाम बनाने वाले की नीतियों पर चल रहा है , उनकी भाषा , उनके तौर - तरीके और उनकी संस्कृति को अपना रहा है , तो इसका अर्थ है कि वह अभी तक गुलाम है l
अंग्रेजों ने भारत में ' फूट डालो और राज करो ' की नीति अपनाई l उन्होंने भारत की जिन रियासतों अथवा प्रान्तों पर विजय पाई , वह उन पर खुला आक्रमण कर के अर्जित नहीं की , बल्कि आपस में फूट डालकर और बाद में किसी एक दल का पक्ष लेकर अपनी कुटिल नीति के सहारे अपनी जड़ें जमाई l फ्रेडरिक जॉन शीअर नामक एक अंग्रेज ने 1835 में अपने एक लेख ' इंडियन आर्मी ' में लिखा था ---- " हिन्दुस्तानियों में राष्ट्राभिमान तो है , पर वे कभी एक नहीं हो सकते l यही हमारे साम्राज्य की सामर्थ्य है l "
अंग्रेजों की भेद नीति यानि की संगठन को विघटन में बदलने की कुटिल नीतितीव्र गति से चलती गई और उसी गति से उनका साम्राज्य भी बढ़ता गया l भारत में 1857 में हुए स्वतंत्रता संग्राम से ब्रिटिश राज कैसे बच गया , इसकी मीमांसा सर जॉन सीली ने इस प्रकार की है ----"एक जाति के खिलाफ दूसरी जाति को लड़ाकर ही बहुतांश में यह गदर मिटाया गया l " जॉन सीली ने अपने एक ग्रन्थ 'द एक्सपैंशन ऑफ इंग्लैंड ' में व्यक्त किये l उन्होंने आगे लिखा है ---- " जब तक यहाँ के लोग सरकार की आलोचना करने और उसके खिलाफ बगावत करने के आदी नहीं हो जाते , तब तक इंगलैंड में बैठकर मजे से हिंदुस्तान पर हुकूमत की जा सकती है लेकिन यदि यहाँ के लोगों में संघर्ष करने की भावना पैदा हो गई , उन्हें संगठित होकर रहना और संगठित रहकर काम करना आ गया तो उसके आगे हमें अपने प्रभुत्व के कायम रहने की आशा बिलकुल छोड़ देनी चाहिए l "
जब तक जागरूकता न हो पुरानी आदतें छूटती नहीं है l युगों तक भारतीय आपस में लड़ते रहे , बिना जागरूकता के आपस में लड़ने की यह आदत कैसे छूटे ?
अंग्रेजों ने भारत में ' फूट डालो और राज करो ' की नीति अपनाई l उन्होंने भारत की जिन रियासतों अथवा प्रान्तों पर विजय पाई , वह उन पर खुला आक्रमण कर के अर्जित नहीं की , बल्कि आपस में फूट डालकर और बाद में किसी एक दल का पक्ष लेकर अपनी कुटिल नीति के सहारे अपनी जड़ें जमाई l फ्रेडरिक जॉन शीअर नामक एक अंग्रेज ने 1835 में अपने एक लेख ' इंडियन आर्मी ' में लिखा था ---- " हिन्दुस्तानियों में राष्ट्राभिमान तो है , पर वे कभी एक नहीं हो सकते l यही हमारे साम्राज्य की सामर्थ्य है l "
अंग्रेजों की भेद नीति यानि की संगठन को विघटन में बदलने की कुटिल नीतितीव्र गति से चलती गई और उसी गति से उनका साम्राज्य भी बढ़ता गया l भारत में 1857 में हुए स्वतंत्रता संग्राम से ब्रिटिश राज कैसे बच गया , इसकी मीमांसा सर जॉन सीली ने इस प्रकार की है ----"एक जाति के खिलाफ दूसरी जाति को लड़ाकर ही बहुतांश में यह गदर मिटाया गया l " जॉन सीली ने अपने एक ग्रन्थ 'द एक्सपैंशन ऑफ इंग्लैंड ' में व्यक्त किये l उन्होंने आगे लिखा है ---- " जब तक यहाँ के लोग सरकार की आलोचना करने और उसके खिलाफ बगावत करने के आदी नहीं हो जाते , तब तक इंगलैंड में बैठकर मजे से हिंदुस्तान पर हुकूमत की जा सकती है लेकिन यदि यहाँ के लोगों में संघर्ष करने की भावना पैदा हो गई , उन्हें संगठित होकर रहना और संगठित रहकर काम करना आ गया तो उसके आगे हमें अपने प्रभुत्व के कायम रहने की आशा बिलकुल छोड़ देनी चाहिए l "
जब तक जागरूकता न हो पुरानी आदतें छूटती नहीं है l युगों तक भारतीय आपस में लड़ते रहे , बिना जागरूकता के आपस में लड़ने की यह आदत कैसे छूटे ?
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