जब समाज पर दुर्बुद्धि का प्रकोप होता है तब अत्याचार और अन्याय छूत की बीमारी की तरह फैलने लगता है I समस्या तब विकट हो जाती है जब समर्थ लोग गिरोह बद्ध होकर अपनी शक्ति का दुरूपयोग करने में कहीं कोई कसर नहीं रहने देते और पीड़ित कोई प्रतिरोध नहीं करते I
ईश्वर का , प्रकृति का आक्रोश तब उभरता है जब अनाचारी अपनी दुष्टता से बाज नहीं आते और सताए जाने वाले कायरता , भीरुता अपनाकर टकराने के लिए कटिबद्ध नहीं होते I
संसार में अनाचार का अस्तित्व तो है , पर उसके साथ ही यह भी विधान है कि सताए जाने वाले बिना हार - जीत का विचार किये प्रतिकार के लिए , प्रतिशोध के लिए तैयार तो रहें I दया , क्षमा आदि के नाम पर अनीति को बढ़ावा देते चलना सदा से अवांछनीय माना जाता रहा है I अनीति के प्रतिकार को मानवीय गरिमा के साथ जोड़ा जाता रहा है I
वर्तमान युग में अनीति और अत्याचार से निपटने के लिए संगठित होकर विवेकपूर्ण ढंग से कार्य करने की आवश्यकता है I
ईश्वर का , प्रकृति का आक्रोश तब उभरता है जब अनाचारी अपनी दुष्टता से बाज नहीं आते और सताए जाने वाले कायरता , भीरुता अपनाकर टकराने के लिए कटिबद्ध नहीं होते I
संसार में अनाचार का अस्तित्व तो है , पर उसके साथ ही यह भी विधान है कि सताए जाने वाले बिना हार - जीत का विचार किये प्रतिकार के लिए , प्रतिशोध के लिए तैयार तो रहें I दया , क्षमा आदि के नाम पर अनीति को बढ़ावा देते चलना सदा से अवांछनीय माना जाता रहा है I अनीति के प्रतिकार को मानवीय गरिमा के साथ जोड़ा जाता रहा है I
वर्तमान युग में अनीति और अत्याचार से निपटने के लिए संगठित होकर विवेकपूर्ण ढंग से कार्य करने की आवश्यकता है I
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