वैराग्य शतक में भतृहरि ने लिखा है ----- भोग में रोग का भय है , सामाजिक स्थिति ( सत्ता ) में गिरने का भय है, धन में खोने का , चोरी होने का भय है , मान - सम्मान में अपमान होने का भय है सत्ता में शत्रुओं का भय है , सौन्दर्य में बुढ़ापे का भय है और शरीर में मृत्यु का भय है l इस तरह संसार में सब कुछ भय से युक्त है l
अध्यात्म्वेताओं के अनुसार भय के मूल में वासना - कामना , तृष्णा और अहंता होती है l इन्ही के कारण व्यक्ति पापकर्म करता है , अनैतिक जीवन जीता है l यही कारण है कि चोर , डाकू , व्यभिचारी, अत्याचारी , आतंकी, भ्रष्टाचारी , अपराधी कभी चैन से निश्चिन्त नहीं बैठ पाते l उन्हें हमेशा भय रहता है कि उनकी करतूत की पोल न खुल जाये l
ईश्वर की शरण और सत्कर्मों की राह समस्त भय के समूल नाश का राजमार्ग है l
अध्यात्म्वेताओं के अनुसार भय के मूल में वासना - कामना , तृष्णा और अहंता होती है l इन्ही के कारण व्यक्ति पापकर्म करता है , अनैतिक जीवन जीता है l यही कारण है कि चोर , डाकू , व्यभिचारी, अत्याचारी , आतंकी, भ्रष्टाचारी , अपराधी कभी चैन से निश्चिन्त नहीं बैठ पाते l उन्हें हमेशा भय रहता है कि उनकी करतूत की पोल न खुल जाये l
ईश्वर की शरण और सत्कर्मों की राह समस्त भय के समूल नाश का राजमार्ग है l
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