जब तक लाठी हाथ में है , तब तक उसके दुरूपयोग का बचाव भी हो सकता है , पर जब मशीनगन चलने लगे और बम बरसने लगे तो फिर सुरक्षा का प्रश्न कठिन हो जाता है l
असाधारण उपलब्धियां यदि कभी नियंत्रण से बाहर होने लगें और मनुष्य की उद्दंडता पर अनुशासन न लगे तो परिणति कितनी भयंकर होती है , इसका परिचय भूतकाल से आज तक मनुष्य जाति अनेक बार प्राप्त कर चुकी है l यह सामर्थ्य ही है जो अनियंत्रित होने पर प्रेत - पिशाच का रूप धर लेती है l मदान्ध जो भी कर बैठे कम है l मानवी दुर्बुद्धि के कारण उपलब्धियां वरदान नहीं अभिशाप बन गई हैं l
शक्ति का सदुपयोग हो, मनुष्य इनसान बने इसके लिए विवेकशीलता और दूरदर्शिता और संवेदनशीलता चाहिए l सभी समस्याओं का एकमात्र हल है ---- संवेदना l
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