एक संत सत्संग को चले जा रहे थे l देखा एक व्यक्ति नाली में गिरा पड़ा है l संत ने उसे उठाया , मुंह साफ किया व बैठाया l देखते ही उसे पहचान गए और आश्चर्य से बोले ---- ' तुम और यहाँ ? " आदमी ठिठका फिर होश संभालकर बोला --- " प्रभु की कृपा है , अन्यथा मैं तो चारपाई से भी नहीं उठ पाता l जब से आपने ठीक किया , तब से रोज बराबर शराब घर तक तो चलकर आ ही जाता हूँ l संत उदास हो गए , अपने अनुदान का ऐसा दुरूपयोग देखकर उन्हें बहुत पीड़ा हुई l आगे बढे तो देखा एक व्यक्ति नवयुवती के पीछे दौड़ा चला जा रहा है l संत उसे पहचान गए l संत ने रोका और कहा --- " तुम तो पहले अंधे थे l आँख मिलते ही इस हरकत पर उतर आये l '
वह व्यक्ति बोला --- " सब आपकी कृपा है l जब तक अँधा था तो नरक में जी रहा था l आपकी कृपा से नयनो का यह सुख मिला है l "
संत को यह सत्य समझ में आया कि--- सदुपयोग का महत्त्व समझाए बिना कोई भी अनुदान , वरदान , उपलब्धि सब व्यर्थ है , बल्कि वह विनाशकारी और पतनगामी भी हो सकते हैं l
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