यह आवश्यक नहीं कि शोषित वर्ग स्वयं ही समर्थ शोषकों को परास्त करे l दास प्रथा इसलिए नहीं चली कि गुलामों ने मालिकों को लड़कर हराया था , बल्कि विश्व के जाग्रत विवेक ने पीड़ित पक्ष की हिमाकत की l उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका में दास प्रथा विरोधी और समर्थक गोरों के बीच ही इस प्रश्न को लेकर गृहयुद्ध हुआ था और उस प्रचलन की कानूनी मान्यता समाप्त हुई थी
बिस्मार्क , क्रोपाटिकिन , नेहरु आदि शोषित वर्ग के नहीं थे तो भी उन्होंने शोषकों के पैर तोड़ने में डटकर मोर्चा लिया l भारत में भी बाल - विवाह , सती- प्रथा , बेगार - प्रथा , बंधुआ मजदूरी आदि का अंत पीड़ितों के पराक्रम ने नहीं , जाग्रत विवेक ने किया l
संसार में अनीति इसलिए नहीं बढ़ी कि दुरात्माओं की ताकत अधिक थी , बल्कि उसका विस्तार इसलिए हुआ क्योंकि उसके विरोध में सिर उठाने वाला साहस मूक और पंगु बना रहा l
बिस्मार्क , क्रोपाटिकिन , नेहरु आदि शोषित वर्ग के नहीं थे तो भी उन्होंने शोषकों के पैर तोड़ने में डटकर मोर्चा लिया l भारत में भी बाल - विवाह , सती- प्रथा , बेगार - प्रथा , बंधुआ मजदूरी आदि का अंत पीड़ितों के पराक्रम ने नहीं , जाग्रत विवेक ने किया l
संसार में अनीति इसलिए नहीं बढ़ी कि दुरात्माओं की ताकत अधिक थी , बल्कि उसका विस्तार इसलिए हुआ क्योंकि उसके विरोध में सिर उठाने वाला साहस मूक और पंगु बना रहा l
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