विचारकों का मत है कि--- यदि मनुष्य समय के अनुरूप अपने विचारों में परिवर्तन नहीं लाता, तो बदलते परिवेश में उसका अस्तित्व समाप्त होने की संभावना उसी प्रकार बढ़ जाएगी , जिस प्रकार शरीर तंत्र के अनुकूलन के अभाव में किसी जीव का अस्तित्व संकट गहरा जाता है l
मनुष्य अपने विचारों के प्रति हठी हो जाता है , बदलते समय के साथ वह अपने विचारों को बदलना नहीं चाहता , यही उसके पतन और विनाश का कारण है l
मनुष्य अपने विचारों के प्रति हठी हो जाता है , बदलते समय के साथ वह अपने विचारों को बदलना नहीं चाहता , यही उसके पतन और विनाश का कारण है l
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