आज से लगभग सौ वर्ष पूर्व की घटना है -- एक युवक अपनी नव वधू और माता - पिता को छोड़कर कलकत्ता की सड़कों पर चार दिन से भूखा भटक रहा था l चक्कर आने लगे और कुछ दूर चलकर एक मंदिर की सीढ़ियों पर निढाल हो गया l पुजारिन ने उसे थोड़ा पानी पिलाया और सहारा देकर अन्दर ले गईं l वह समझ गईं कि भूख के कारण युवक की ये हालत है l उन्होंने उसे पूरी व हलवा दिया , खाकर युवक तृप्त हुआ l पुजारी ने पूछा --- कहाँ से आये हो बेटा l
उसने कहा --- 'शिवपुर ' से l
' घर छोड़ दिया क्या ? " उत्तर ---- ' हाँ '
पुजारी ने पूछा --- 'क्यों ? ' युवक ने उत्तर दिया --- ' संगीत सीखने के लिए '
पुजारी ने आनंद विभोर होकर कहा --- ' नाद ब्रह्म की साधना करोगे l '
युवक ने उत्तर दिया --- ' हाँ , महाराज ! '
वह मंदिर था दक्षिणेश्वर का कालिका मंदिर , पुजारी थे स्वामी रामकृष्ण परमहंस , युवक को खाना देने वाली माँ शारदामणि और नाद ब्रह्म के जिज्ञासु साधक थे --- उस्ताद अलाउद्दीन खां l
स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने वेदान्त की शिक्षाओं के प्रचार के लिए स्वामी विवेकानंद को चुना तो नाद ब्रह्म की उपासना - पद्धति के प्रचार के लिए उस्ताद अलाउद्दीन खां को l
सत्संस्कार --- हिन्दू हो या मुसलमान किसी भी जाति के व्यक्ति में विद्दमान हों , उन्हें प्रयोग और साधना के माध्यम से जाग्रत और प्रखर किया जा सकता है l
बात 1914 की है l ' लाल बुखार ' की महामारी से आसपास के इलाके में लोग कीट - पतंगों ' की तरह मर रहे थे l चिकित्सा आदि की व्यवस्था न होने के कारण रोग पीड़ित व्यक्तियों को रोग मुक्त करने के लिए कुछ किया तो नहीं जा सकता था l बाबा का ध्यान महामारी के कारण अनाथ हुए बच्चों की ओर गया l उन्होंने सब बच्चों को एकत्रित किया और अपने एक शिष्य राजा से कहकर उनके रहने और भोजन आदि की व्यवस्था करा दी l उनकी पत्नी रुई की बत्ती से बच्चों को बूंद - बूंद कर दूध पिलाती l दोनों ने मिलकर सब बच्चों को पाला - पोसा और बड़ा कर लिया l बच्चे कुछ और बड़े हुए तो उत्तरदायी पिता की तरह उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की योजना बना डाली और उस योजना के अनुसार ही तैयार हो गया युग प्रसिद्ध ' मैहर बैंड ' l जिसने देश के कोने - कोने में ख्याति प्राप्त की l
उसने कहा --- 'शिवपुर ' से l
' घर छोड़ दिया क्या ? " उत्तर ---- ' हाँ '
पुजारी ने पूछा --- 'क्यों ? ' युवक ने उत्तर दिया --- ' संगीत सीखने के लिए '
पुजारी ने आनंद विभोर होकर कहा --- ' नाद ब्रह्म की साधना करोगे l '
युवक ने उत्तर दिया --- ' हाँ , महाराज ! '
वह मंदिर था दक्षिणेश्वर का कालिका मंदिर , पुजारी थे स्वामी रामकृष्ण परमहंस , युवक को खाना देने वाली माँ शारदामणि और नाद ब्रह्म के जिज्ञासु साधक थे --- उस्ताद अलाउद्दीन खां l
स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने वेदान्त की शिक्षाओं के प्रचार के लिए स्वामी विवेकानंद को चुना तो नाद ब्रह्म की उपासना - पद्धति के प्रचार के लिए उस्ताद अलाउद्दीन खां को l
सत्संस्कार --- हिन्दू हो या मुसलमान किसी भी जाति के व्यक्ति में विद्दमान हों , उन्हें प्रयोग और साधना के माध्यम से जाग्रत और प्रखर किया जा सकता है l
बात 1914 की है l ' लाल बुखार ' की महामारी से आसपास के इलाके में लोग कीट - पतंगों ' की तरह मर रहे थे l चिकित्सा आदि की व्यवस्था न होने के कारण रोग पीड़ित व्यक्तियों को रोग मुक्त करने के लिए कुछ किया तो नहीं जा सकता था l बाबा का ध्यान महामारी के कारण अनाथ हुए बच्चों की ओर गया l उन्होंने सब बच्चों को एकत्रित किया और अपने एक शिष्य राजा से कहकर उनके रहने और भोजन आदि की व्यवस्था करा दी l उनकी पत्नी रुई की बत्ती से बच्चों को बूंद - बूंद कर दूध पिलाती l दोनों ने मिलकर सब बच्चों को पाला - पोसा और बड़ा कर लिया l बच्चे कुछ और बड़े हुए तो उत्तरदायी पिता की तरह उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की योजना बना डाली और उस योजना के अनुसार ही तैयार हो गया युग प्रसिद्ध ' मैहर बैंड ' l जिसने देश के कोने - कोने में ख्याति प्राप्त की l
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