पं. श्रीराम शर्मा आचार्य का कहना है ---- धर्म का वास्तविक प्रयोजन है ---- जनसाधारण को कर्तव्य और विवेक का अवलम्बन लेकर परिष्कृत जीवन जीने के लिए तत्पर करना l लोग कर्मकांडों को ही लक्ष्य पूर्ति का आधार मान लेते हैं , इस कारण क्रिया मुख्य हो जाती है और भावना गौण l
कर्तव्यहीन व्यक्ति तथाकथित धर्म - कृत्यों को ही सब कुछ मान लेते हैं l परिणाम यह होता है कि लोग आदर्शवादी तथ्य अपनाने के कष्ट कारक कार्य को व्यर्थ कहकर निरर्थक समझने लगते हैं l जब सस्ते में अभीष्ट लाभ होता हो तो कोई महंगे रास्ते पर क्यों चले l
कर्तव्यहीन व्यक्ति तथाकथित धर्म - कृत्यों को ही सब कुछ मान लेते हैं l परिणाम यह होता है कि लोग आदर्शवादी तथ्य अपनाने के कष्ट कारक कार्य को व्यर्थ कहकर निरर्थक समझने लगते हैं l जब सस्ते में अभीष्ट लाभ होता हो तो कोई महंगे रास्ते पर क्यों चले l
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