पं. श्रीराम शर्मा आचार्य ने लिखा है ---- ' चिन्तन परिक्षेत्र बंजर हो जाने के कारण कार्य भी नागफनी और बबूल जैसे हो रहे हैं l इससे मानवता का कष्ट पीड़ित होना स्वाभाविक है l '
विषैले साहित्य के कारण लोगों का नैतिक चरित्र तेजी से गिरता जा रहा है l इस गिरावट को तभी रोका जा सकता है जब श्रेष्ठ और नैतिक साहित्य से लोग सद्विचार ग्रहण करें और सन्मार्ग पर चलें l
रोम्यां रोलां ने एक बार अपने भाषण में कहा था --- " किसी राष्ट्र का लोकतंत्रात्मक जीवन विघटित और विश्रंखलित हो जाता है , तो उसे सभ्य और सुसंस्कृत बनाने के लिए मूक विचार क्रांति की जरुरत होती है l '
इस मूक विचार क्रांति से क्या मतलब ?
उन्होंने जवाब दिया था --- " पुस्तकालय l पुस्तकों से भरे घरेलू पुस्तकालय . सार्वजनिक पुस्तकालय l ऐसे पुस्तकालय जो सद्ज्ञान के माध्यम से हमारे सामाजिक जीवन में व्याप्त बुराइयों , कमजोरियों और अंधविश्वासों को दूर करने में योगदान दे सकते हैं l पुस्तकालय छोटे - बड़े के भेदभाव से परे एक ऐसी दिव्य संस्था है , जिसमे प्रत्येक व्यक्ति अपनी ज्ञान - शक्ति और क्षमताओं का विकास कर सकता है l "
रूस की सामाजिक चेतना के विकास में पुस्तकालयों ने असाधारण रूप से काम किया है l किवदंती है कि रूस के पुस्तकालयों में लगी हुई अलमारियां एक पंक्ति में लगाई जाएँ , तो मास्को और रोम को जोड़ा जा सकता है l
प्रसिद्ध विद्वान् डॉ. रंगनाथन ने एक बार जापान की यात्रा की l ओसाका में उन्होंने एक स्थान पर कतार में खड़े लोगों को पुस्तकें पढ़ते देखा l उन्हें आश्चर्य हुआ l वहां जाकर पता लगाया तो मालूम हुआ कि यह एक पुस्तकालय है जहाँ प्रतिदिन भारी संख्या में लोग पुस्तकें पढ़ने आते हैं l वहां के अध्यक्ष ने बताया कि यह पुस्तकालय 30 वर्ष पहले बना था , तब कम लोगों के आने का अनुमान था लेकिन अब बहुत अधिक लोग आते हैं , इसलिए सीट रिजर्व कर दी गई है l जिनका नंबर नहीं आता , वे लोग अपनी अध्ययन की आकांक्षा को तृप्त करने के लिए बाहर खड़े होकर पढ़ते हैं l जापानी लोगों की इस स्वाध्याय वृत्ति के कारण ही जापान एशिया के विकसित देशों में अपना प्रथम स्थान रखता है l
विषैले साहित्य के कारण लोगों का नैतिक चरित्र तेजी से गिरता जा रहा है l इस गिरावट को तभी रोका जा सकता है जब श्रेष्ठ और नैतिक साहित्य से लोग सद्विचार ग्रहण करें और सन्मार्ग पर चलें l
रोम्यां रोलां ने एक बार अपने भाषण में कहा था --- " किसी राष्ट्र का लोकतंत्रात्मक जीवन विघटित और विश्रंखलित हो जाता है , तो उसे सभ्य और सुसंस्कृत बनाने के लिए मूक विचार क्रांति की जरुरत होती है l '
इस मूक विचार क्रांति से क्या मतलब ?
उन्होंने जवाब दिया था --- " पुस्तकालय l पुस्तकों से भरे घरेलू पुस्तकालय . सार्वजनिक पुस्तकालय l ऐसे पुस्तकालय जो सद्ज्ञान के माध्यम से हमारे सामाजिक जीवन में व्याप्त बुराइयों , कमजोरियों और अंधविश्वासों को दूर करने में योगदान दे सकते हैं l पुस्तकालय छोटे - बड़े के भेदभाव से परे एक ऐसी दिव्य संस्था है , जिसमे प्रत्येक व्यक्ति अपनी ज्ञान - शक्ति और क्षमताओं का विकास कर सकता है l "
रूस की सामाजिक चेतना के विकास में पुस्तकालयों ने असाधारण रूप से काम किया है l किवदंती है कि रूस के पुस्तकालयों में लगी हुई अलमारियां एक पंक्ति में लगाई जाएँ , तो मास्को और रोम को जोड़ा जा सकता है l
प्रसिद्ध विद्वान् डॉ. रंगनाथन ने एक बार जापान की यात्रा की l ओसाका में उन्होंने एक स्थान पर कतार में खड़े लोगों को पुस्तकें पढ़ते देखा l उन्हें आश्चर्य हुआ l वहां जाकर पता लगाया तो मालूम हुआ कि यह एक पुस्तकालय है जहाँ प्रतिदिन भारी संख्या में लोग पुस्तकें पढ़ने आते हैं l वहां के अध्यक्ष ने बताया कि यह पुस्तकालय 30 वर्ष पहले बना था , तब कम लोगों के आने का अनुमान था लेकिन अब बहुत अधिक लोग आते हैं , इसलिए सीट रिजर्व कर दी गई है l जिनका नंबर नहीं आता , वे लोग अपनी अध्ययन की आकांक्षा को तृप्त करने के लिए बाहर खड़े होकर पढ़ते हैं l जापानी लोगों की इस स्वाध्याय वृत्ति के कारण ही जापान एशिया के विकसित देशों में अपना प्रथम स्थान रखता है l
No comments:
Post a Comment