21 September 2019

WISDOM ------ सर्वधर्म समभाव के प्रतीक --- दाराशिकोह ( अखंड ज्योति जुलाई 2017 से )

  भारत  में  कुछ  ऐसे  व्यक्तित्व  हुए  हैं   जिनके  योगदान  को  भुलाया  नहीं  जा  सकता  l  ऐसा  व्यक्तित्व  है  -- दाराशिकोह  का   l   दाराशिकोह   शाहजहाँ  के  बड़े  पुत्र  व  औरंगजेब  के  बड़े  भाई  थे  l
  औरंगजेब  को  सत्ता  का  लोभ  था   l  उसने  अपने  पिता  शाहजहाँ  को  जेल  में  डाल  दिया  और  दाराशिकोह  को  धोखा  देकर  छल  से  मार  दिया  l
  दाराशिकोह    द्वारा   किये  गए  प्रयासों  से  ही  प्राचीन  भारतीय  दर्शन  का  का  प्रवाह  अंतर्राष्ट्रीय  फलक  पर  चर्चित  हुआ   l   दाराशिकोह  ने  50  भारतीय  उपनिषदों  का  संस्कृत  से  फारसी  में  अनुवाद  किया  l  19 वीं  सदी  की  शुरुआत  में  फ्रांसीसी  विद्वान्    आकतील  दुपेरो  ने  इसका  अनुवाद  फारसी  से  लैटिन   भाषा  में  कर  के  इसे  प्रकाशित  किया   l   इसे  जब  प्रसिद्ध  दार्शनिक    शोपेनहावर  ने  पढ़ा  तो   इसकी  बहुत  प्रशंसा  की   और  अपने  स्वयं  के  जीवन  के  लिए   प्रेरणादायी  बताया   l
  दाराशिकोह  को  सदैव  मुस्लिम  रहस्यवाद  और  हिन्दू  रहस्यवाद  की  साझी शिक्षाएं  आकर्षित  करती  थीं  l  इन  दोनों  धर्मों  के  बीच  आपसी  समझ  बढ़ाने  के  लिए  ही  वे   भारतीय  धर्म ग्रंथों  का  फारसी  में  अनुवाद करने  लगे  l   1656  में  दाराशिकोह  ने  ' मजमा - अल - बहरीन  ( दो  समंदर  का  मिलन )  नामक  पुस्तक  लिखी  l  इसके  बारे  में  उनका  मानना  था  की  ये  किताब  दोनों  धर्मों  के  सर्वश्रेष्ठ  ज्ञान  का  निचोड़  है  l  दाराशिकोह  के  चिंतन  में  भारतीयता  का  वास  है   l  वे   महान  लेखक  थे  l
 '  सूफीनात  अल  औलिया '  और  ' सकीनात  अल औलिया '   उनकी   सूफी  संतों  के  जीवन  चरित्र   पर  लिखी  हुई  पुस्तकें  हैं  l  उनके  द्वारा  लिखी  गई  पुस्तक  ' रिसाला  ए  हकनुमा '   और  ' तारीकात  ए  हकीकत '   में  सूफीवाद  का  दार्शनिक  चिंतन  है  l  ' अक्सीर  ए  आजम '  नामक  उनके  कविता  संग्रह  में  उनकी  सर्वेश्वरवादी  प्रवृति  का  बोध  होता  है  l  इसके  अतिरिक्त  उनकी  पुस्तक  ' हसनात  अल   आरिफीन '   और   ' मुकालम  ए  बाबालाल  ओ  दाराशिकोह '  में  धर्म  और  वैराग्य  का  विवेचन  हुआ  है  l 
 दाराशिकोह  का  जीवन  अल्प  किन्तु  भव्य  था  l  यदि  उन्होंने  उस  समय  उपनिषदों  का  फारसी  अनुवाद  न  किया  होता  ,  तो  उनका  लैटिन  अनुवाद  भी  न  होता  l फिर  उनका  अन्य  भाषाओँ  में  भी  अनुवाद  नहीं  हो  सकता  था  l   ऋग्वेद  ,  हमारी  पूरी  दुनिया  का  सबसे  प्राचीनतम  ज्ञानकोष  है    ल मैक्समूलर  के  अनुवाद  के  बाद   इसकी  अंतर्राष्ट्रीय  स्तर  पर  धाक  जमी  और  बाद  में   यूनेस्को  ने  भी  इसे  अपनी  विश्व  धरोहर  की  सूची  में  जगह  दी  l
दाराशिकोह  का  व्यक्तित्व  अनूठा  था   l  इस महान  राजकुमार  को  असमय  ही  धरती  से  जाना  पड़ा  l

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