भारत में कुछ ऐसे व्यक्तित्व हुए हैं जिनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता l ऐसा व्यक्तित्व है -- दाराशिकोह का l दाराशिकोह शाहजहाँ के बड़े पुत्र व औरंगजेब के बड़े भाई थे l
औरंगजेब को सत्ता का लोभ था l उसने अपने पिता शाहजहाँ को जेल में डाल दिया और दाराशिकोह को धोखा देकर छल से मार दिया l
दाराशिकोह द्वारा किये गए प्रयासों से ही प्राचीन भारतीय दर्शन का का प्रवाह अंतर्राष्ट्रीय फलक पर चर्चित हुआ l दाराशिकोह ने 50 भारतीय उपनिषदों का संस्कृत से फारसी में अनुवाद किया l 19 वीं सदी की शुरुआत में फ्रांसीसी विद्वान् आकतील दुपेरो ने इसका अनुवाद फारसी से लैटिन भाषा में कर के इसे प्रकाशित किया l इसे जब प्रसिद्ध दार्शनिक शोपेनहावर ने पढ़ा तो इसकी बहुत प्रशंसा की और अपने स्वयं के जीवन के लिए प्रेरणादायी बताया l
दाराशिकोह को सदैव मुस्लिम रहस्यवाद और हिन्दू रहस्यवाद की साझी शिक्षाएं आकर्षित करती थीं l इन दोनों धर्मों के बीच आपसी समझ बढ़ाने के लिए ही वे भारतीय धर्म ग्रंथों का फारसी में अनुवाद करने लगे l 1656 में दाराशिकोह ने ' मजमा - अल - बहरीन ( दो समंदर का मिलन ) नामक पुस्तक लिखी l इसके बारे में उनका मानना था की ये किताब दोनों धर्मों के सर्वश्रेष्ठ ज्ञान का निचोड़ है l दाराशिकोह के चिंतन में भारतीयता का वास है l वे महान लेखक थे l
' सूफीनात अल औलिया ' और ' सकीनात अल औलिया ' उनकी सूफी संतों के जीवन चरित्र पर लिखी हुई पुस्तकें हैं l उनके द्वारा लिखी गई पुस्तक ' रिसाला ए हकनुमा ' और ' तारीकात ए हकीकत ' में सूफीवाद का दार्शनिक चिंतन है l ' अक्सीर ए आजम ' नामक उनके कविता संग्रह में उनकी सर्वेश्वरवादी प्रवृति का बोध होता है l इसके अतिरिक्त उनकी पुस्तक ' हसनात अल आरिफीन ' और ' मुकालम ए बाबालाल ओ दाराशिकोह ' में धर्म और वैराग्य का विवेचन हुआ है l
दाराशिकोह का जीवन अल्प किन्तु भव्य था l यदि उन्होंने उस समय उपनिषदों का फारसी अनुवाद न किया होता , तो उनका लैटिन अनुवाद भी न होता l फिर उनका अन्य भाषाओँ में भी अनुवाद नहीं हो सकता था l ऋग्वेद , हमारी पूरी दुनिया का सबसे प्राचीनतम ज्ञानकोष है ल मैक्समूलर के अनुवाद के बाद इसकी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर धाक जमी और बाद में यूनेस्को ने भी इसे अपनी विश्व धरोहर की सूची में जगह दी l
दाराशिकोह का व्यक्तित्व अनूठा था l इस महान राजकुमार को असमय ही धरती से जाना पड़ा l
औरंगजेब को सत्ता का लोभ था l उसने अपने पिता शाहजहाँ को जेल में डाल दिया और दाराशिकोह को धोखा देकर छल से मार दिया l
दाराशिकोह द्वारा किये गए प्रयासों से ही प्राचीन भारतीय दर्शन का का प्रवाह अंतर्राष्ट्रीय फलक पर चर्चित हुआ l दाराशिकोह ने 50 भारतीय उपनिषदों का संस्कृत से फारसी में अनुवाद किया l 19 वीं सदी की शुरुआत में फ्रांसीसी विद्वान् आकतील दुपेरो ने इसका अनुवाद फारसी से लैटिन भाषा में कर के इसे प्रकाशित किया l इसे जब प्रसिद्ध दार्शनिक शोपेनहावर ने पढ़ा तो इसकी बहुत प्रशंसा की और अपने स्वयं के जीवन के लिए प्रेरणादायी बताया l
दाराशिकोह को सदैव मुस्लिम रहस्यवाद और हिन्दू रहस्यवाद की साझी शिक्षाएं आकर्षित करती थीं l इन दोनों धर्मों के बीच आपसी समझ बढ़ाने के लिए ही वे भारतीय धर्म ग्रंथों का फारसी में अनुवाद करने लगे l 1656 में दाराशिकोह ने ' मजमा - अल - बहरीन ( दो समंदर का मिलन ) नामक पुस्तक लिखी l इसके बारे में उनका मानना था की ये किताब दोनों धर्मों के सर्वश्रेष्ठ ज्ञान का निचोड़ है l दाराशिकोह के चिंतन में भारतीयता का वास है l वे महान लेखक थे l
' सूफीनात अल औलिया ' और ' सकीनात अल औलिया ' उनकी सूफी संतों के जीवन चरित्र पर लिखी हुई पुस्तकें हैं l उनके द्वारा लिखी गई पुस्तक ' रिसाला ए हकनुमा ' और ' तारीकात ए हकीकत ' में सूफीवाद का दार्शनिक चिंतन है l ' अक्सीर ए आजम ' नामक उनके कविता संग्रह में उनकी सर्वेश्वरवादी प्रवृति का बोध होता है l इसके अतिरिक्त उनकी पुस्तक ' हसनात अल आरिफीन ' और ' मुकालम ए बाबालाल ओ दाराशिकोह ' में धर्म और वैराग्य का विवेचन हुआ है l
दाराशिकोह का जीवन अल्प किन्तु भव्य था l यदि उन्होंने उस समय उपनिषदों का फारसी अनुवाद न किया होता , तो उनका लैटिन अनुवाद भी न होता l फिर उनका अन्य भाषाओँ में भी अनुवाद नहीं हो सकता था l ऋग्वेद , हमारी पूरी दुनिया का सबसे प्राचीनतम ज्ञानकोष है ल मैक्समूलर के अनुवाद के बाद इसकी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर धाक जमी और बाद में यूनेस्को ने भी इसे अपनी विश्व धरोहर की सूची में जगह दी l
दाराशिकोह का व्यक्तित्व अनूठा था l इस महान राजकुमार को असमय ही धरती से जाना पड़ा l
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