पं. श्रीराम शर्मा आचार्य ने अपने जीवन के अंतिम दिनों में सभी लोगों की गोष्ठी बुलाई और कहा कि आज हम तुम लोगों को अपने जीवन का सार बताएँगे , उन्होंने कहा --- " मैं जीवन भर तुम लोगों से गायत्री की बातें करता रहा , अब मैं तुम लोगों से गायत्री माता की माता के बारे में कहता हूँ l गायत्री माता की माता का नाम है ----' श्रम ' l जो श्रम करता है , उसे गायत्री माता वरदान देती है , जो श्रम नहीं करता , उस निठल्ले को कोई वरदान नहीं देता l "
उन्होंने आगे कहा ---- " यह श्रम तब और भी व्यापक एवं आध्यात्मिक बन जाता है और व्यक्तित्व की प्रगति के द्वार खोलता है , जब श्रम सेवा में तब्दील हो जाता है l जब हम सेवा के माध्यम से श्रम करते हैं तो हम निजी जीवन को समृद्ध बनाते हैं और अपने व्यक्तित्व को व्यापक बनाते हैं l "
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