अन्याय चाहे कितना ही बड़ा क्यों न हो , उसका प्रतिकार करने का साहस न करना अपने मानवीय कर्तव्यों की उपेक्षा करना है l ' पं. श्रीराम शर्मा आचार्य ने वाड्मय - २८ में लिखा है ---- " हम निश्चित रूप से इन दिनों विषम परिस्थितियों के बीच रह रहे हैं l पौराणिक विवेचन के अनुसार इसे असुरता के हाथों देवत्व का पराभव होना कहा जा सकता है l कभी हिरण्याक्ष, हिरण्यकशिपु, वृत्तासुर , भस्मासुर , रावण और कंस आदि ने जो आतंक उत्पन्न किए थे वह आज की परिस्थितियों के साथ पूरी तरह मेल खाता है l पुनरावृति स्पष्ट परिलक्षित होती है l उन दिनों शासक वर्ग का ही आतंक था , पर आज तो राजा - रंक, धनी - निर्धन , शिक्षित - अशिक्षित , वक्ता - श्रोता सभी एक राह पर चल रहे हैं l छद्म और अनाचार ही सबका इष्टदेव बन चला है l नीति और मर्यादा का पक्ष दिनोंदिन दुर्बल होता जा रहा है l उपाय दो ही हैं -- एक यह कि शुतुरमुर्ग की तरह आँखें बंद कर के भवितव्यता के सामने सिर झुका दिया जाये l जो होना है उसे होने दिया जाये l दूसरा यह कि जो सामर्थ्य के अंतर्गत है उसे करने में कोई कसर न उठा रखी जाये l
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