मनुष्य का स्वभाव ही ऐसा है कि वह हर गलत काम करने पर दूसरों को दोष देता है , परिस्थितियों को दोष देता है , परन्तु खुद को दोष नहीं देता l
अब्राहम लिंकन ने अपने जीवन के अनुभव से दूसरों की आलोचना करने के बुरे परिणाम को जाना l उनका प्रिय कोटेशन था ---- " किसी की आलोचना मत करो , ताकि आपकी भी आलोचना न हो l " जब भी श्रीमती लिंकन और दूसरे लोग दक्षिणी प्रान्त के लोगों की आलोचना करते तो लिंकन जवाब देते थे --- " उनकी आलोचना मत करो , अगर हम उन परिस्थितियों में होते तो हम भी वैसे ही होते l " लिंकन अपने जीवन के कटु अनुभवों से यह जानते थे कि तीखी आलोचना और डाँट - फटकार हमेशा नुकसानदायक होती है और उससे कोई लाभ नहीं होता है l आलोचना यदि दूसरों को सुधारने के लिए भी हो तो दूसरों को सुधारने के बजाय स्वयं को सुधारना ज्यादा फायदेमंद होता है और उसमे खतरा भी कम होता है l
यदि किसी के मन में स्वयं के प्रति विद्वेष पैदा करना है , जो दशकों तक पलता रहे और मौत के बाद भी बना रहे , तो इसके लिए कुछ खास नहीं करना पड़ता , सिर्फ चुनिंदा शब्दों में चुभती हुई आलोचना करनी होती है l ज्यादातर लोग जाने - अनजाने ऐसा ही करते हैं और दूसरों के मन में खुद के प्रति विषबीज बो देते हैं l
अब्राहम लिंकन ने अपने जीवन के अनुभव से दूसरों की आलोचना करने के बुरे परिणाम को जाना l उनका प्रिय कोटेशन था ---- " किसी की आलोचना मत करो , ताकि आपकी भी आलोचना न हो l " जब भी श्रीमती लिंकन और दूसरे लोग दक्षिणी प्रान्त के लोगों की आलोचना करते तो लिंकन जवाब देते थे --- " उनकी आलोचना मत करो , अगर हम उन परिस्थितियों में होते तो हम भी वैसे ही होते l " लिंकन अपने जीवन के कटु अनुभवों से यह जानते थे कि तीखी आलोचना और डाँट - फटकार हमेशा नुकसानदायक होती है और उससे कोई लाभ नहीं होता है l आलोचना यदि दूसरों को सुधारने के लिए भी हो तो दूसरों को सुधारने के बजाय स्वयं को सुधारना ज्यादा फायदेमंद होता है और उसमे खतरा भी कम होता है l
यदि किसी के मन में स्वयं के प्रति विद्वेष पैदा करना है , जो दशकों तक पलता रहे और मौत के बाद भी बना रहे , तो इसके लिए कुछ खास नहीं करना पड़ता , सिर्फ चुनिंदा शब्दों में चुभती हुई आलोचना करनी होती है l ज्यादातर लोग जाने - अनजाने ऐसा ही करते हैं और दूसरों के मन में खुद के प्रति विषबीज बो देते हैं l
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