श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान कहते हैं ---- " जैसे जल में चलने वाली नाव को वायु हर लेती है , वैसे ही विषयों में विचरती हुई इंद्रियों में से मन जिस इंद्रिय के साथ रहता है , वह एक ही इंद्रिय इस पुरुष की बुद्धि को हर लेती है l "
इसका अर्थ यह हुआ कि मनुष्य को बहुत सावधान रहना चाहिए l एक ही इन्द्रिय काफी है , जो मनुष्य को पतन की ओर ले जा सकती है l द्वापरयुग में एक असुर था --- शंबरासुर l उसने प्रद्दुम्न ( श्रीकृष्ण के बड़े पुत्र ) का हरण कर लिया l शंबरासुर पाककला में निपुण स्त्रियों का ही अधिकतर हरण करता था l उसकी पाकशाला सदैव सजी रहती थी l उसे खाने का बड़ा शौक था l वह चाहता था कि उसकी पाकशाला में बढ़िया से बढ़िया खाना बने और उसे खिलाया जाये l वह किसी स्त्री की खूबसूरती को नहीं देखता था , न ही उन्हें हाथ लगाता था , मात्र उसका पाककला में पारंगत होना जरुरी होता था l प्रद्दुम्न ने उस असुर को मारकर अगणित स्त्रियों को मुक्त कराया l मात्र एक इंद्रिय ही उस असुर के पतन का कारण बनी ---- सुस्वादु आहार का सेवन l दिन रात उसी का चिंतन l
इसका अर्थ यह हुआ कि मनुष्य को बहुत सावधान रहना चाहिए l एक ही इन्द्रिय काफी है , जो मनुष्य को पतन की ओर ले जा सकती है l द्वापरयुग में एक असुर था --- शंबरासुर l उसने प्रद्दुम्न ( श्रीकृष्ण के बड़े पुत्र ) का हरण कर लिया l शंबरासुर पाककला में निपुण स्त्रियों का ही अधिकतर हरण करता था l उसकी पाकशाला सदैव सजी रहती थी l उसे खाने का बड़ा शौक था l वह चाहता था कि उसकी पाकशाला में बढ़िया से बढ़िया खाना बने और उसे खिलाया जाये l वह किसी स्त्री की खूबसूरती को नहीं देखता था , न ही उन्हें हाथ लगाता था , मात्र उसका पाककला में पारंगत होना जरुरी होता था l प्रद्दुम्न ने उस असुर को मारकर अगणित स्त्रियों को मुक्त कराया l मात्र एक इंद्रिय ही उस असुर के पतन का कारण बनी ---- सुस्वादु आहार का सेवन l दिन रात उसी का चिंतन l
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