मनुष्य के विकास का और पशुओं से उसकी श्रेष्ठता का मुख्य कारण उसकी विवेक शक्ति अर्थात बुद्धि है l जब यह कार्य करना बंद कर दे , तो उसका सर्वनाश सुनिश्चित है l
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते हैं --- बुद्धि के नाश से गिरने की प्रक्रिया को रोकना -- मनुष्य को संभालकर ऊँचा उठना सिखाना ही अध्यात्म है l आचार्य श्री कहते हैं --- 'गिरना सरल है l उठना कठिन है ---- इसलिए उन्होंने अध्यात्म को जिंदगी का शीर्षासन कहा है l जो इस शीर्षासन को सीख लेगा उसकी जिंदगी बन जाएगी l अपनी कामनाओं पर अंकुश रखकर , आसक्ति से दूर हटकर त्याग भरा जीवन जीना जिसने सीख लिया , वही सुख - शांति में रहता है l
बगदाद के शासक ने जितना कर सकता था धन - सम्पति जमा की l उसके लिए वह प्रजा पर तरह - तरह के अन्याय व अत्याचार भी करता था l उससे प्रजा बड़ी दुःखी थी l एक दिन गुरु नानक घूमते - घूमते बगदाद जा पहुंचे l शाही महल के सामने ही कंकड़ों का छोटा सा ढेर जमा कर उन्ही के पास बैठ गए l किसी ने गुरु नानक के आने की सूचना दी l राजा स्वयं वहां पहुंचा l कंकड़ों का ढेर देखते ही उसने पूछा --- ' महाराज ! आपने यह कंकड़ किसलिए इकट्ठे किए हैं ? " गुरु नानक ने शीघ्र उत्तर दिया --- " महाराज ! प्रलय के दिन इन्हे ईश्वर को उपहार में दूंगा l "
सम्राट जोर से हँसा और बोला --- " अरे नानक ! मैंने तो सुना था तू बड़ा ज्ञानी है , पर तुझे इतना भी नहीं पता कि प्रलय के दिन रूहें अपने साथ कंकड़ तो क्या सुई - धागा भी नहीं ले जा सकतीं l
गुरु नानक ने कहा ---- " मालूम नहीं महोदय , पर मैं आया तो इसी उद्देश्य से हूँ कि और तो नहीं पर शायद आप प्रजा को लूटकर जो धन इकट्ठा कर रहे हो , उसे अपने साथ ले जायेंगे तो उनके साथ ही यह कंकड़ - पत्थर भी चले जायेंगे l " राजा समझ गया और अब प्रजा का उत्पीड़न बंद कर उनकी सेवा में जुट गया l
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते हैं --- बुद्धि के नाश से गिरने की प्रक्रिया को रोकना -- मनुष्य को संभालकर ऊँचा उठना सिखाना ही अध्यात्म है l आचार्य श्री कहते हैं --- 'गिरना सरल है l उठना कठिन है ---- इसलिए उन्होंने अध्यात्म को जिंदगी का शीर्षासन कहा है l जो इस शीर्षासन को सीख लेगा उसकी जिंदगी बन जाएगी l अपनी कामनाओं पर अंकुश रखकर , आसक्ति से दूर हटकर त्याग भरा जीवन जीना जिसने सीख लिया , वही सुख - शांति में रहता है l
बगदाद के शासक ने जितना कर सकता था धन - सम्पति जमा की l उसके लिए वह प्रजा पर तरह - तरह के अन्याय व अत्याचार भी करता था l उससे प्रजा बड़ी दुःखी थी l एक दिन गुरु नानक घूमते - घूमते बगदाद जा पहुंचे l शाही महल के सामने ही कंकड़ों का छोटा सा ढेर जमा कर उन्ही के पास बैठ गए l किसी ने गुरु नानक के आने की सूचना दी l राजा स्वयं वहां पहुंचा l कंकड़ों का ढेर देखते ही उसने पूछा --- ' महाराज ! आपने यह कंकड़ किसलिए इकट्ठे किए हैं ? " गुरु नानक ने शीघ्र उत्तर दिया --- " महाराज ! प्रलय के दिन इन्हे ईश्वर को उपहार में दूंगा l "
सम्राट जोर से हँसा और बोला --- " अरे नानक ! मैंने तो सुना था तू बड़ा ज्ञानी है , पर तुझे इतना भी नहीं पता कि प्रलय के दिन रूहें अपने साथ कंकड़ तो क्या सुई - धागा भी नहीं ले जा सकतीं l
गुरु नानक ने कहा ---- " मालूम नहीं महोदय , पर मैं आया तो इसी उद्देश्य से हूँ कि और तो नहीं पर शायद आप प्रजा को लूटकर जो धन इकट्ठा कर रहे हो , उसे अपने साथ ले जायेंगे तो उनके साथ ही यह कंकड़ - पत्थर भी चले जायेंगे l " राजा समझ गया और अब प्रजा का उत्पीड़न बंद कर उनकी सेवा में जुट गया l
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