पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने लिखा है ---- ' पत्थरों के पुराने मंदिरों में सिर झुकाने की रीति निभाने वालों की दशा भी पत्थर जैसी हो चली है l विचार और आचरण के बीच की गहरी खाई ने धर्म को प्रभावहीन बना दिया है l '
आचार्य श्री आगे लिखते हैं ---- ' धर्म का प्रचार तो बहुत हो रहा है , लेकिन इसका आचरण नहीं के बराबर हो रहा है l जहाँ देखो , जिधर सुनो , वहीँ प्रवचन , जो कि यथार्थ में पर - वचन हैं , दिखाई - सुनाई दे रहे हैं l जिसे देखो - सुनो , वही शास्त्र वचन दोहराता है , लेकिन अनुभव से एकदम अनभिज्ञ है l इसी का परिणाम है कि -- जीवन निरंतर दुःख और पीड़ा में डूबता जा रहा है l बातें देवत्व की हो रहीं हैं , जबकि जीवन निरंतर पशुता की ओर झुकता चला जा रहा है l
धर्मतंत्र का परिष्कार अनिवार्य है l
आचार्य श्री आगे लिखते हैं ---- ' धर्म का प्रचार तो बहुत हो रहा है , लेकिन इसका आचरण नहीं के बराबर हो रहा है l जहाँ देखो , जिधर सुनो , वहीँ प्रवचन , जो कि यथार्थ में पर - वचन हैं , दिखाई - सुनाई दे रहे हैं l जिसे देखो - सुनो , वही शास्त्र वचन दोहराता है , लेकिन अनुभव से एकदम अनभिज्ञ है l इसी का परिणाम है कि -- जीवन निरंतर दुःख और पीड़ा में डूबता जा रहा है l बातें देवत्व की हो रहीं हैं , जबकि जीवन निरंतर पशुता की ओर झुकता चला जा रहा है l
धर्मतंत्र का परिष्कार अनिवार्य है l
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