कल , आज और कल के रूप में प्राचीन महर्षियों ने काल के तीन रूपों को त्रिकाल की संज्ञा दी है l अतीत हर मनुष्य के जीवन का एक अभिन्न अंग होता है l लोग अतीत को भुला देते हैं , लेकिन अतीत कभी व्यक्ति को नहीं भुलाता , हर पल - हर क्षण उसके साथ जुड़ा होता है l हमारा अतीत ही यह निर्धारित करता है कि हमारा भविष्य कैसा होगा l यदि किसी को भी अपने भविष्य की चिंता है तो उसे अपने वर्तमान को सुधारना चाहिए , क्योंकि बाद में वही अतीत बन जायेगा और उसके भविष्य को निर्धारित करने में अपनी अहम् भूमिका निभाएगा l
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी एक लेख में लिखते हैं ---- ' हमें जीवन में केवल वर्तमान दीखता है l अतीत अदृश्य होता है l लेकिन यह अतीत समुद्र में डूबे हुए उस असीम हिमखंड के समान होता है , जो अदृश्य तो होता है लेकिन किसी भी जहाज से टकराने पर उसे चूर - चूर कर सकता है l अतीत उसी तरह हमारे जीवन में अदृश्य होते हुए भी अपना पूरा प्रभाव डालता है l हमारे जीवन में अनायास घटित होने वाली सभी घटनाओं का कारण अतीत होता है l आचार्य श्री का कहना है अतीत को बदला नहीं जा सकता l यदि उसे बदलना है तो उसका एकमात्र समाधान --- वर्तमान को सुधारना है l वर्तमान को सुधारकर ही अतीत के दुष्कर्मों का प्रायश्चित संभव है , उसमे परिवर्तन संभव है l अतीत में हमने जो गड्ढा खोदा है , यदि उसे वर्तमान में नहीं पाटा गया तो भविष्य में उसमे गिरना स्वाभाविक है l इसलिए यह जरुरी है कि हम सभी अपने जीवन में श्रेष्ठ कर्मों को अपनाएं , सन्मार्ग पर चलें , अतीत में जाने - अनजाने में हुए कर्मों का प्रायश्चित करें , तभी हम अपने भविष्य को सुन्दर- सुखद बना सकेंगे l '
एक घटना है ---- एक व्यक्ति के पेट में बहुत दर्द होता था , जो खाता था वह उलटी कर देता था l किसी भी इलाज से उसे कोई फायदा नहीं हुआ l फिर उसने किसी प्रसिद्ध संत से इस बारे में पूछा l संत ने सूक्ष्म दृष्टि से उसके अतीत की ओर झाँका और ये पाया कि वह व्यक्ति अपने पुराने जन्म में पक्षियों का शिकार करता था , पक्षियों को मारना ही उसका शौक था l इस दुष्कर्म का परिणाम उसे इस जन्म में मिल रहा है l संत ने उससे कहा कि यदि वह इस जन्म में पक्षियों की सेवा करता है , उन्हें दाना - पानी देता है तो इन शुभ कर्मों के मेल से उसका स्वास्थ्य सुधर सकता है l अन्यथा कोई भी उपाय उसके पेट दर्द को ठीक नहीं कर सकता l
हमारा वर्तमान ही वह माध्यम है , जिसके द्वारा अतीत के कर्मों का प्रायश्चित किया जा सकता है l जो बीत चुका है , उसे तो सुधारा नहीं जा सकता , लेकिन उसके स्थान पर शुभ कर्म कर के अतीत में किये गए अशुभ कर्मों का प्रायश्चित किया जा सकता है l
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी एक लेख में लिखते हैं ---- ' हमें जीवन में केवल वर्तमान दीखता है l अतीत अदृश्य होता है l लेकिन यह अतीत समुद्र में डूबे हुए उस असीम हिमखंड के समान होता है , जो अदृश्य तो होता है लेकिन किसी भी जहाज से टकराने पर उसे चूर - चूर कर सकता है l अतीत उसी तरह हमारे जीवन में अदृश्य होते हुए भी अपना पूरा प्रभाव डालता है l हमारे जीवन में अनायास घटित होने वाली सभी घटनाओं का कारण अतीत होता है l आचार्य श्री का कहना है अतीत को बदला नहीं जा सकता l यदि उसे बदलना है तो उसका एकमात्र समाधान --- वर्तमान को सुधारना है l वर्तमान को सुधारकर ही अतीत के दुष्कर्मों का प्रायश्चित संभव है , उसमे परिवर्तन संभव है l अतीत में हमने जो गड्ढा खोदा है , यदि उसे वर्तमान में नहीं पाटा गया तो भविष्य में उसमे गिरना स्वाभाविक है l इसलिए यह जरुरी है कि हम सभी अपने जीवन में श्रेष्ठ कर्मों को अपनाएं , सन्मार्ग पर चलें , अतीत में जाने - अनजाने में हुए कर्मों का प्रायश्चित करें , तभी हम अपने भविष्य को सुन्दर- सुखद बना सकेंगे l '
एक घटना है ---- एक व्यक्ति के पेट में बहुत दर्द होता था , जो खाता था वह उलटी कर देता था l किसी भी इलाज से उसे कोई फायदा नहीं हुआ l फिर उसने किसी प्रसिद्ध संत से इस बारे में पूछा l संत ने सूक्ष्म दृष्टि से उसके अतीत की ओर झाँका और ये पाया कि वह व्यक्ति अपने पुराने जन्म में पक्षियों का शिकार करता था , पक्षियों को मारना ही उसका शौक था l इस दुष्कर्म का परिणाम उसे इस जन्म में मिल रहा है l संत ने उससे कहा कि यदि वह इस जन्म में पक्षियों की सेवा करता है , उन्हें दाना - पानी देता है तो इन शुभ कर्मों के मेल से उसका स्वास्थ्य सुधर सकता है l अन्यथा कोई भी उपाय उसके पेट दर्द को ठीक नहीं कर सकता l
हमारा वर्तमान ही वह माध्यम है , जिसके द्वारा अतीत के कर्मों का प्रायश्चित किया जा सकता है l जो बीत चुका है , उसे तो सुधारा नहीं जा सकता , लेकिन उसके स्थान पर शुभ कर्म कर के अतीत में किये गए अशुभ कर्मों का प्रायश्चित किया जा सकता है l
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