मानव में अनेक सद्गुण जैसे सत्य,अहिंसा,अक्रोध आदि होते हैं l सारे सद्गुणों की शक्ति का स्रोत निर्भयता है, जिस व्यक्ति के जीवन में भय है , वह सत्य का पालन नहीं कर सकता, न वह अहिंसा का उपासक हो सकता है , न क्रोध को वश में रख सकता है। निर्भयता वह शक्ति है जो व्यक्ति को जीवन के हर क्षेत्र में नीतिमय बनाये रखने में मदद करती है l
आचार्य श्री लिखते हैं --- ' नैतिकता यदि विवेक पर आधारित है तो वह आत्मशक्ति प्रेरित नैतिकता होगी और विश्व व्यापी होगी l इस नैतिकता में निर्भयता होगी l जैसे यदि कोई व्यक्ति अन्याय के प्रतिकार में कोई गलत कदम उठा लेता है तो उसकी विवेक शक्ति इतनी बलवान होगी कि वह अपनी इस गलती को स्वीकार करेगा l
लेकिन यदि नैतिकता धर्म और राजसत्ता से प्रभावित है तो वह नैतिकता भय प्रेरित होगी l
भय युक्त नैतिकता की आड़ में मनुष्य छिपकर अनुचित कार्य करता है , अनुचित कार्य करने पर वह व्यक्ति असत्य का आश्रय लेता है और जब सारा समाज असत्य की बुनियाद पर नीतिमान बनने का दावा करता है , तब अनीति सर्वव्यापी बन जाती है , तब सम्पूर्ण समाज में नैतिक पतन का दृश्य दिखाई देने लगता है l '
आचार्य श्री का कहना है --- यदि स्वस्थ समाज का नव - निर्माण करना है , तो नैतिक शक्ति की बुनियाद पर ही ऐसा हो सकेगा l
आचार्य श्री लिखते हैं --- ' नैतिकता यदि विवेक पर आधारित है तो वह आत्मशक्ति प्रेरित नैतिकता होगी और विश्व व्यापी होगी l इस नैतिकता में निर्भयता होगी l जैसे यदि कोई व्यक्ति अन्याय के प्रतिकार में कोई गलत कदम उठा लेता है तो उसकी विवेक शक्ति इतनी बलवान होगी कि वह अपनी इस गलती को स्वीकार करेगा l
लेकिन यदि नैतिकता धर्म और राजसत्ता से प्रभावित है तो वह नैतिकता भय प्रेरित होगी l
भय युक्त नैतिकता की आड़ में मनुष्य छिपकर अनुचित कार्य करता है , अनुचित कार्य करने पर वह व्यक्ति असत्य का आश्रय लेता है और जब सारा समाज असत्य की बुनियाद पर नीतिमान बनने का दावा करता है , तब अनीति सर्वव्यापी बन जाती है , तब सम्पूर्ण समाज में नैतिक पतन का दृश्य दिखाई देने लगता है l '
आचार्य श्री का कहना है --- यदि स्वस्थ समाज का नव - निर्माण करना है , तो नैतिक शक्ति की बुनियाद पर ही ऐसा हो सकेगा l
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