मनुष्य की दिखावे की प्रवृति होती है , वह स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ सिद्ध करना चाहता है लेकिन सत्य तो सत्य ही होता है -----
एक था बन्दर और एक था सियार l दोनों में बड़ी मैत्री थी l एक दिन दोनों वन विहार के लिए निकले l उस रास्ते पर एक कब्रिस्तान पड़ता था l एक कब्र के पास पहुंचकर बन्दर ने उसे साष्टांग दंडवत प्रणाम किया और आँख मूंदकर कुछ स्तुति सी गाने लगा l उसे ख्याल था कि उसे ऐसा करते देख सियार उसकी विद्व्ता से बहुत प्रभावित होगा l लेकिन सियार ने कुछ और ही समझा , उसे लगा कि बन्दर को कोई बीमारी हो गई l सियार ने पूछा ---- ' तुम यहाँ खड़े - खड़े क्या कर रहे हो ? ' बन्दर ने कहा ---- ' तुझे मालूम नहीं यह समाधि मेरे पितामह की है l मैं उनके उत्कृष्ट ज्ञान , बल - पौरुष और कला - कौशल का गुणानुवाद कर रहा हूँ जिससे मैं भी वैसा ही बनूँ l '
बन्दर सोच रहा था कि इस बार सियार उसकी श्रद्धा , भक्ति की दाद देगा , पर सियार ने हँसते हुए कहा ---- " जो जी में आये , कहो मित्र ! तुम्हारे पितामह तो यहाँ कोई बैठे नहीं हैं , जो सत्य - असत्य का निर्णय दे सकें l '
बन्दर को अपने दिखावे पर बड़ा दुःख हुआ और उसने फिर कभी वैसा प्रपंच न रचने का संकल्प लिया l
एक था बन्दर और एक था सियार l दोनों में बड़ी मैत्री थी l एक दिन दोनों वन विहार के लिए निकले l उस रास्ते पर एक कब्रिस्तान पड़ता था l एक कब्र के पास पहुंचकर बन्दर ने उसे साष्टांग दंडवत प्रणाम किया और आँख मूंदकर कुछ स्तुति सी गाने लगा l उसे ख्याल था कि उसे ऐसा करते देख सियार उसकी विद्व्ता से बहुत प्रभावित होगा l लेकिन सियार ने कुछ और ही समझा , उसे लगा कि बन्दर को कोई बीमारी हो गई l सियार ने पूछा ---- ' तुम यहाँ खड़े - खड़े क्या कर रहे हो ? ' बन्दर ने कहा ---- ' तुझे मालूम नहीं यह समाधि मेरे पितामह की है l मैं उनके उत्कृष्ट ज्ञान , बल - पौरुष और कला - कौशल का गुणानुवाद कर रहा हूँ जिससे मैं भी वैसा ही बनूँ l '
बन्दर सोच रहा था कि इस बार सियार उसकी श्रद्धा , भक्ति की दाद देगा , पर सियार ने हँसते हुए कहा ---- " जो जी में आये , कहो मित्र ! तुम्हारे पितामह तो यहाँ कोई बैठे नहीं हैं , जो सत्य - असत्य का निर्णय दे सकें l '
बन्दर को अपने दिखावे पर बड़ा दुःख हुआ और उसने फिर कभी वैसा प्रपंच न रचने का संकल्प लिया l
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