पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने वाङ्मय पृष्ठ १. १ ४ पर लिखा है ---- ' हम निश्चित रूप से इन दिनों विषम परिस्थितियों के बीच रह रहे हैं l पौराणिक विवेचन के अनुसार इसे असुरता के हाथों देवत्व का पराभव होना कहा जा सकता है l कभी हिरण्याक्ष , हिरण्यकश्यपु , वृत्तासुर , भस्मासुर , रावण , कंस आदि ने आतंक उत्पन्न किये थे और देवताओं को खदेड़ दिया था l उन दिनों शासक वर्ग का ही आतंक था , पर आज तो राजा - रंक , धनी - निर्धन , शिक्षित - अशिक्षित सभी एक राह पर चल रहे हैं l छद्म और अनाचार ही सबका इष्टदेव बन चला है l नीति और मर्यादा का पक्ष दिनों दिन दुर्बल होता जाता है l उपाय दो ही हैं --- एक यह कि शुतुरमुर्ग की तरह आँख बंद कर के भवितव्यता के सामने सिर झुका दिया जाये , जो होना है उसे होने दिया जाये l दूसरा यह कि जो सामर्थ्य के अंतर्गत है , उसे करने में कुछ न उठा रखा जाये l '
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