दैवी शक्तियों में आसुरी शक्तियों से कहीं ज्यादा बल होता है l पर उनकी शिथिलता एवं अस्तव्यस्तता ही उनके पिछड़ जाने का कारण बनती है l आसुरी शक्तियां वास्तव में बहुत दुर्बल हैं , उनकी सत्ता बहुत ही क्षीण है l पर अपनी चैतन्यता और तत्परता के कारण वे बहुत जल्दी बढ़ जाती हैं l यही तत्परता जब दैवी शक्तियों में उत्पन्न हो जाती है तो सहज ही इतनी प्रबल हो जाती है कि आसुरी शक्तियों को सरलता पूर्वक परास्त कर सके l
मनुष्य के भीतर तथा समस्त संसार में दैवी और आसुरी शक्तियों की सत्ताएं काम कर रही हैं l जब कभी असुरता की प्रबलता हो जाती है तो चारों ओर अगणित विपत्तियों की बाढ़ आ जाती है l इसके उपरांत जब दैवी शक्तियां प्रबल होती हैं तो सुख , शांति , समृद्धि , सफलता , सहयोग , सद्भावना , उल्लासमय वातावरण चारों ओर निखरा पड़ा दिखाई देता है l विवेकशील व्यक्ति को यह निश्चय करना चाहिए कि उसे स्वर्ग प्रिय है या नरक l यदि स्वर्गीय परिस्थितियां चाहिएं तो अपनी दैवी सम्पदाओं को बढ़ाना चाहिए l उन्हें इतना समर्थ बनाना चाहिए कि आसुरी शक्तियों से भली प्रकार टक्कर ले सकें l यदि सौ कौरवों से साधारण श्रेणी के पांच सिपाही लड़ा दिए जाते तो वे विजय प्राप्त नहीं कर सकते थे l पांडवों के पास समुचित बल था , उसी से वे उपयुक्त टक्कर ले सके और विजयी हुए l गीता में भगवान ने कहा है कि अनीति और अत्याचार के विरुद्ध पांडवों का कौरवों से युद्ध अनिवार्य था l यदि यह युद्ध न होता तो अनीति और अत्याचार का ही आधिपत्य हो जाता l
रावण सीता का अपहरण कर के बड़ी तीव्र गति से चला जा रहा था l सीता हृदय विदारक विलाप कर रहीं थीं l यह सब घटना मार्ग में जटायु ने देखीं , उसका हृदय यह सब देखकर व्याकुल हुआ और वह दुष्ट को दंड देने के लिए तत्पर हो गया l एक झप्पटें में ही महाबली रावण को अस्त - व्यस्त कर दिया , लेकिन सशस्त्र रावण का सामना वह वृद्ध पक्षी कहाँ तक करता l रावण ने अपने खड्ग से जटायु के पर काट दिए l वृद्ध जटायु ने अनीति का प्रतिरोध करने में अपना जीवन मिटा दिया l
मनुष्य के भीतर तथा समस्त संसार में दैवी और आसुरी शक्तियों की सत्ताएं काम कर रही हैं l जब कभी असुरता की प्रबलता हो जाती है तो चारों ओर अगणित विपत्तियों की बाढ़ आ जाती है l इसके उपरांत जब दैवी शक्तियां प्रबल होती हैं तो सुख , शांति , समृद्धि , सफलता , सहयोग , सद्भावना , उल्लासमय वातावरण चारों ओर निखरा पड़ा दिखाई देता है l विवेकशील व्यक्ति को यह निश्चय करना चाहिए कि उसे स्वर्ग प्रिय है या नरक l यदि स्वर्गीय परिस्थितियां चाहिएं तो अपनी दैवी सम्पदाओं को बढ़ाना चाहिए l उन्हें इतना समर्थ बनाना चाहिए कि आसुरी शक्तियों से भली प्रकार टक्कर ले सकें l यदि सौ कौरवों से साधारण श्रेणी के पांच सिपाही लड़ा दिए जाते तो वे विजय प्राप्त नहीं कर सकते थे l पांडवों के पास समुचित बल था , उसी से वे उपयुक्त टक्कर ले सके और विजयी हुए l गीता में भगवान ने कहा है कि अनीति और अत्याचार के विरुद्ध पांडवों का कौरवों से युद्ध अनिवार्य था l यदि यह युद्ध न होता तो अनीति और अत्याचार का ही आधिपत्य हो जाता l
रावण सीता का अपहरण कर के बड़ी तीव्र गति से चला जा रहा था l सीता हृदय विदारक विलाप कर रहीं थीं l यह सब घटना मार्ग में जटायु ने देखीं , उसका हृदय यह सब देखकर व्याकुल हुआ और वह दुष्ट को दंड देने के लिए तत्पर हो गया l एक झप्पटें में ही महाबली रावण को अस्त - व्यस्त कर दिया , लेकिन सशस्त्र रावण का सामना वह वृद्ध पक्षी कहाँ तक करता l रावण ने अपने खड्ग से जटायु के पर काट दिए l वृद्ध जटायु ने अनीति का प्रतिरोध करने में अपना जीवन मिटा दिया l
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