महर्षि व्यास ने महाभारत जैसे महाकाव्य की रचना के बाद यह अनुभव किया कि यह पर्याप्त नहीं है l ज्ञान , विज्ञान तो रावण और कंस आदि राक्षसों के पास भी था , किन्तु उनमे संवेदना , आदर्श परायणता का अभाव होने से वह लाभ की जगह हानिकारक सिद्ध हुआ l इसलिए श्री व्यासदेव ने भागवत की रचना की l श्रीकृष्ण कथा को ' श्रीमद् भागवत कथा ' भी कहा जाता है l श्रीकृष्ण की विभिन्न लीलाओं को कथा के माध्यम से बताया जिससे लोग ईश्वर के आदर्श रूप को समझें और उसको अपना कर अपने जीवन को सफल बनायें l
कथा में बताया गया है कि ----- संसार में धर्म और अधर्म दोनों रहते हैं l कुछ व्यक्ति जो अधर्म से ग्रस्त हो जाते हैं तो उनके कारण संसार में दुःख और कष्ट बढ़ते हैं l ऐसे ही व्यक्तियों को राक्षस , दैत्य और नर - पिशाच कहा जाता है l असुरता आकृति पर नहीं प्रकृति पर आधारित है l निरपराध लोगों को सताना असुरता की पहचान है और असुरता की वृद्धि से सामूहिक चेतना में व्याकुलता बढ़ जाती है l भगवान कृष्ण के जन्म से पूर्व असुरता बहुत बढ़ गई थी , इसे समाप्त करने के लिए भगवान ने जन्म लिया l धर्म के नाश और अधरम की वृद्धि होने से सृष्टि का संतुलन बिगड़ता है तब भगवान जन्म लेकर इस असंतुलन को दूर करते हैं और धर्म की होती है l
कथा में बताया गया है कि ----- संसार में धर्म और अधर्म दोनों रहते हैं l कुछ व्यक्ति जो अधर्म से ग्रस्त हो जाते हैं तो उनके कारण संसार में दुःख और कष्ट बढ़ते हैं l ऐसे ही व्यक्तियों को राक्षस , दैत्य और नर - पिशाच कहा जाता है l असुरता आकृति पर नहीं प्रकृति पर आधारित है l निरपराध लोगों को सताना असुरता की पहचान है और असुरता की वृद्धि से सामूहिक चेतना में व्याकुलता बढ़ जाती है l भगवान कृष्ण के जन्म से पूर्व असुरता बहुत बढ़ गई थी , इसे समाप्त करने के लिए भगवान ने जन्म लिया l धर्म के नाश और अधरम की वृद्धि होने से सृष्टि का संतुलन बिगड़ता है तब भगवान जन्म लेकर इस असंतुलन को दूर करते हैं और धर्म की होती है l
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