हमारे पुराणों में ऋषियों ने कथाओं के माध्यम से मनुष्यों को सहअस्तित्व का सन्देश दिया है और बताया है कि ' प्रकृति ही ईश्वर है , जिसने भी उस पर नियंत्रण करने की कोशिश की उसका अंत हुआ है l हम प्रकृति को माँ के रूप में पूजते हैं , उनके विभिन्नरूप हैं -- माँ दुर्गा , पार्वती , सीता ---- l
पुराण में एक कथा है ---- भस्मासुर की l इसने शिवजी से वरदान प्राप्त किया था कि जिसके भी सिर पर हाथ रख दे , वह भस्म हो जाये l इस वरदान ने उसे अहंकारी बना दिया l वह चाहने लगा कि सारे संसार पर उसकी हुकूमत चले , वही सर्वेसर्वा हो l जो भी व्यक्ति हो या देश उसकी बात नहीं मानता, वह उस पर आक्रमण करता , अपनी शक्ति के आगे उसे झुकने को विवश करता और फिर भी न माने तो उसको वह भस्म कर देता l
यहाँ तक सब ठीक था , उसका अहंकार बढ़ता गया , अब उसने प्रकृति को
' माता पार्वती ' को अपने वश में करना चाहा l यही उसकी सबसे बड़ी भूल थी l उसकी तपस्या से उसे जो वरदान मिला था , वही उसके नाश का कारण बना l
इस कथा के माध्यम से ऋषियों ने मनुष्य को समझाया कि सूर्य , चन्द्रमा , समुद्र सब अपनी मर्यादा में रहते हैं इसलिए मनुष्य को प्रकृति के साथ संतुलन बना कर रहना चाहिए l अन्यथा जिन साधनों के बल पर वह अहंकार करता है , वही उसका विनाश कर देते हैं l
पुराण में एक कथा है ---- भस्मासुर की l इसने शिवजी से वरदान प्राप्त किया था कि जिसके भी सिर पर हाथ रख दे , वह भस्म हो जाये l इस वरदान ने उसे अहंकारी बना दिया l वह चाहने लगा कि सारे संसार पर उसकी हुकूमत चले , वही सर्वेसर्वा हो l जो भी व्यक्ति हो या देश उसकी बात नहीं मानता, वह उस पर आक्रमण करता , अपनी शक्ति के आगे उसे झुकने को विवश करता और फिर भी न माने तो उसको वह भस्म कर देता l
यहाँ तक सब ठीक था , उसका अहंकार बढ़ता गया , अब उसने प्रकृति को
' माता पार्वती ' को अपने वश में करना चाहा l यही उसकी सबसे बड़ी भूल थी l उसकी तपस्या से उसे जो वरदान मिला था , वही उसके नाश का कारण बना l
इस कथा के माध्यम से ऋषियों ने मनुष्य को समझाया कि सूर्य , चन्द्रमा , समुद्र सब अपनी मर्यादा में रहते हैं इसलिए मनुष्य को प्रकृति के साथ संतुलन बना कर रहना चाहिए l अन्यथा जिन साधनों के बल पर वह अहंकार करता है , वही उसका विनाश कर देते हैं l
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