वक्त के साथ हर शब्द के मायने बदल जाते हैं l कभी पूंजीपतियों और श्रमिकों में वर्ग संघर्ष होता था , तब पूंजीपतियों का हथियार था --- तालाबंदी l श्रमिकों का काम बंद हो जाता था और उनके परिवारों की भूखों मरने की नौबत आ जाती थी l
वजह कुछ भी हो नुकसान तो आज भी इसी वर्ग को है l अमीरों ने तो इतनी सम्पति जोड़ के रखी है कि वर्षों तक बैठ कर खाएंगे तो खतम नहीं होगी , उनके घर में ही सब सुख - सुविधाएँ हैं l बड़े - बुजुर्ग कहते रहे जो परिश्रम करेगा , वह कभी भूखों नहीं मरेगा , कहीं न कहीं मेहनत कर के कमा ही लेगा l लेकिन अब तस्वीर उलट गई l मालिक काम ही नहीं कराना चाहता तो परिश्रमी क्या करे ?
कहते हैं ' आलस्य ' मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है , अपनी प्रगति चाहने वाले को आलस्य से दूर रहना चाहिए लेकिन जब हट्टे - कट्टे , युवा , अपनी मेहनत और अपनी नियमित दिनचर्या से अपने जीवन के हर पल को जीने वालों में घर में बंद रहकर यह आलस का दुर्गुण कब सूक्ष्म रूप से प्रवेश कर जाये , कोई नहीं जनता l
इस धरती पर मानव ने ने बड़े - बड़े भीषण युद्ध , आपदाएं , महामारी और उतार - चढ़ाव देखे हैं और हर चुनौती का मनुष्य ने बड़ी वीरता से मुकाबला किया l परिस्थितियों से हार नहीं मानी l पुन: उठ खड़ा हुआ l मनुष्य इतना भयभीत पहले कभी नहीं था कि उसे इस तरह घर में दुबकना पड़े l
यह बुद्धिजीवियों , वैज्ञानिकों , धर्माधिकारियों और समाज को दिशा देने वालों के चिंतन का विषय है l
वजह कुछ भी हो नुकसान तो आज भी इसी वर्ग को है l अमीरों ने तो इतनी सम्पति जोड़ के रखी है कि वर्षों तक बैठ कर खाएंगे तो खतम नहीं होगी , उनके घर में ही सब सुख - सुविधाएँ हैं l बड़े - बुजुर्ग कहते रहे जो परिश्रम करेगा , वह कभी भूखों नहीं मरेगा , कहीं न कहीं मेहनत कर के कमा ही लेगा l लेकिन अब तस्वीर उलट गई l मालिक काम ही नहीं कराना चाहता तो परिश्रमी क्या करे ?
कहते हैं ' आलस्य ' मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है , अपनी प्रगति चाहने वाले को आलस्य से दूर रहना चाहिए लेकिन जब हट्टे - कट्टे , युवा , अपनी मेहनत और अपनी नियमित दिनचर्या से अपने जीवन के हर पल को जीने वालों में घर में बंद रहकर यह आलस का दुर्गुण कब सूक्ष्म रूप से प्रवेश कर जाये , कोई नहीं जनता l
इस धरती पर मानव ने ने बड़े - बड़े भीषण युद्ध , आपदाएं , महामारी और उतार - चढ़ाव देखे हैं और हर चुनौती का मनुष्य ने बड़ी वीरता से मुकाबला किया l परिस्थितियों से हार नहीं मानी l पुन: उठ खड़ा हुआ l मनुष्य इतना भयभीत पहले कभी नहीं था कि उसे इस तरह घर में दुबकना पड़े l
यह बुद्धिजीवियों , वैज्ञानिकों , धर्माधिकारियों और समाज को दिशा देने वालों के चिंतन का विषय है l
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