महाभारत में एक प्रसंग है ---- घटोत्कच वध l जब पांडव वनवास की अवधि में थे , तब भीम ने हिडिम्बा नाम की एक कन्या से विवाह किया था , जो एक राक्षस की पुत्री थी l उससे उनके एक पुत्र हुआ जिसका नाम घटोत्कच था l महारथी भीम का यह पुत्र बहुत वीर था और मायावी विद्दा जानता था l रात्रि के समय उसकी ये शक्तियां और अधिक प्रबल हो जाती थीं l
महाभारत के युद्ध में पांडव पक्ष की ओर से एक दिन उसे भी युद्ध का दायित्व मिला l
घटोत्कच ने अदृश्य होकर कौरव पक्ष पर जो आक्रमण किया उससे कौरव सेना में हाहाकार मच गया l युद्ध का मैदान सैनिकों की लाशों से पट गया l दुर्योधन की सेना में एक से बढ़कर एक महारथी थे लेकिन अदृश्य शत्रु जो मायावी हो उसका सामना कैसे करें ? भीष्म पितामह शर -शैया पर थे l आचार्य द्रोण भी वीरगति को प्राप्त हो चुके थे
दुर्योधन भीष्म पितामह के पास गया और निवेदन किया कि --- पितामह , बताइये , यह क्या मुसीबत है ? और इस विपत्ति से कैसे छुटकारा मिले ?
पितामह ने कहा ---- ' यह महारथी भीम का पुत्र घटोत्कच है जो मायावी विद्दा जानता है , इसे पराजित करना आसान नहीं है l दुर्योधन के बार - बार निवेदन करने पर पितामह ने कहा --- ' कर्ण के पास एक दिव्य शक्ति है l जब कर्ण ने देवराज इंद्र को अपने जन्मजात कवच - कुण्डल दान में दिए थे तब इंद्र ने प्रसन्न होकर उसे एक दिव्य शक्ति प्रदान की थी और कहा था कि शत्रु पर तुम इसका प्रयोग जीवन में केवल एक बार कर सकते हो l कर्ण ने उस शक्ति को अर्जुन पर वार करने के लिए सुरक्षित रखा है l केवल उसी शक्ति से घटोत्कच का अंत किया जा सकता है l '
अब दुर्योधन ने कर्ण से कहा --- हमारे सैनिक मरते जा रहे हैं , तुम उस दिव्य शक्ति से इस विपत्ति का अंत करो l कर्ण दुर्योधन का मित्र था , इनकार कैसे करता l कर्ण ने घटोत्कच को लक्ष्य कर के उस दिव्य शक्ति का प्रयोग किया l सारी माया छट गई , घटोत्कच का अंत हुआ l
कर्ण सूर्य पुत्र था l सूर्य से ही हम सबको प्राण - शक्ति मिलती है l आज के सन्दर्भ में इस
कथा से हमें यही प्रेरणा मिलती है कि जब शत्रु अदृश्य हो , मायावी हो , सामान्य जन समझ न पाए कि आक्रमणकारी कौन है तब हम अपनी प्राण - शक्ति को बढाकर , अपने आत्मबल को बढ़ाकर , जागरूक और निर्भय रहकर ही जीवन संग्राम में विजयी हो सकते हैं l यह आत्मबल ही दिव्य शक्ति है l
महाभारत के युद्ध में पांडव पक्ष की ओर से एक दिन उसे भी युद्ध का दायित्व मिला l
घटोत्कच ने अदृश्य होकर कौरव पक्ष पर जो आक्रमण किया उससे कौरव सेना में हाहाकार मच गया l युद्ध का मैदान सैनिकों की लाशों से पट गया l दुर्योधन की सेना में एक से बढ़कर एक महारथी थे लेकिन अदृश्य शत्रु जो मायावी हो उसका सामना कैसे करें ? भीष्म पितामह शर -शैया पर थे l आचार्य द्रोण भी वीरगति को प्राप्त हो चुके थे
दुर्योधन भीष्म पितामह के पास गया और निवेदन किया कि --- पितामह , बताइये , यह क्या मुसीबत है ? और इस विपत्ति से कैसे छुटकारा मिले ?
पितामह ने कहा ---- ' यह महारथी भीम का पुत्र घटोत्कच है जो मायावी विद्दा जानता है , इसे पराजित करना आसान नहीं है l दुर्योधन के बार - बार निवेदन करने पर पितामह ने कहा --- ' कर्ण के पास एक दिव्य शक्ति है l जब कर्ण ने देवराज इंद्र को अपने जन्मजात कवच - कुण्डल दान में दिए थे तब इंद्र ने प्रसन्न होकर उसे एक दिव्य शक्ति प्रदान की थी और कहा था कि शत्रु पर तुम इसका प्रयोग जीवन में केवल एक बार कर सकते हो l कर्ण ने उस शक्ति को अर्जुन पर वार करने के लिए सुरक्षित रखा है l केवल उसी शक्ति से घटोत्कच का अंत किया जा सकता है l '
अब दुर्योधन ने कर्ण से कहा --- हमारे सैनिक मरते जा रहे हैं , तुम उस दिव्य शक्ति से इस विपत्ति का अंत करो l कर्ण दुर्योधन का मित्र था , इनकार कैसे करता l कर्ण ने घटोत्कच को लक्ष्य कर के उस दिव्य शक्ति का प्रयोग किया l सारी माया छट गई , घटोत्कच का अंत हुआ l
कर्ण सूर्य पुत्र था l सूर्य से ही हम सबको प्राण - शक्ति मिलती है l आज के सन्दर्भ में इस
कथा से हमें यही प्रेरणा मिलती है कि जब शत्रु अदृश्य हो , मायावी हो , सामान्य जन समझ न पाए कि आक्रमणकारी कौन है तब हम अपनी प्राण - शक्ति को बढाकर , अपने आत्मबल को बढ़ाकर , जागरूक और निर्भय रहकर ही जीवन संग्राम में विजयी हो सकते हैं l यह आत्मबल ही दिव्य शक्ति है l
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