एक व्यापारी रेगिस्तान के रास्ते व्यापार कर के लौट रहा था l उसने अपनी झोली में कई कीमती हीरे - जवाहरात आदि भर रखे थे l उसके मित्रों ने उसे समझाया कि कुछ जवाहरात छोड़ दे और उनके बदले पानी की चिश्तियां बाँध ले , परन्तु उसने उनकी राय नहीं मानी और अपनी यात्रा जारी रखी l रास्ते में उसकी भोजन सामग्री व पानी समाप्त होने पर जब वह निढाल हो गया , तब उसे एहसास हुआ कि हीरे - जवाहरातों से पेट नहीं भरा जा सकता l
मनुष्य इसी प्रकार निरर्थक साधनों के पीछे भागने में अपना जीवन बरबाद कर देता है l तृष्णा कभी समाप्त नहीं होती l संतुलन जरुरी है l
मनुष्य इसी प्रकार निरर्थक साधनों के पीछे भागने में अपना जीवन बरबाद कर देता है l तृष्णा कभी समाप्त नहीं होती l संतुलन जरुरी है l
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