दूसरों पर अपना प्रभुत्व कायम रखने की लालसा और इसके लिए आधुनिक अस्त्र -शस्त्र व यंत्रों के निर्माण की अंधी दौड़ ने मानव सभ्यता को उस स्थिति में पहुंचा दिया जहाँ मनुष्य , मनुष्य से डरने लगा , इतना ही नहीं उसके बेजान शरीर से भी भयभीत है प्रकृति के संकेत को समझें 'जियो और जीने दो ' l
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने अपनी अमृतवाणी में कहा था ----- " अब जिन परिस्थितियों में मनुष्य रह रहा है और जिस रास्ते पर चल रहा है , उस पर मौत के अलावा दूसरी चीज हमको दिखाई नहीं पड़ती l हम और आप ऐसे वक्त में रह रहे हैं जिसमे इनसान का स्वार्थ बेहिसाब रूप से बढ़ता जा रहा है l आदमी समझदार तो बहुत होता जा रहा है , पर आदमी पत्थर का बनता जा रहा है , निष्ठुर बनता जा रहा है -------- काम - वासना और तृष्णा के अलावा और कोई दूसरा लक्ष्य नहीं है l ऐसा घिनौना लक्ष्य जिससे इनसानियत भी शर्मिंदा होती है l अब इसके अंदर से दया , करुणा , ममता , स्नेह , दुलार और आदर्शवाद के सारे सिद्धांत खतम होते जा रहे हैं l अगर तरक्की इसी हिसाब से होती चली गई तो आप देखना आदमी को एक - दूसरे से डर मालूम पड़ेगा l पहले आदमी को देखकर हिम्मत बंधती थी कि आदमी आ गया , वह हमारी सहायता कर सकता है , हम एक से दो हो गए l लेकिन अब हमको भय मालूम पड़ता है कि कहीं ऐसा न हो कि हमारे साथ - साथ जो व्यक्ति चलता है , वही हमारे लिए पिशाच न सिद्ध हो l ---------- आदमी की जो तरक्की हो रही है , उसे देखकर ऐसा मालूम पड़ता है कि इससे तो हमारा पिछड़ापन लाख दरजे अच्छा था , यह तरक्की मुझे बड़ी खौफनाक मालूम पड़ती है l "--------------
आचार्य श्री ने हमें भविष्य के प्रति आशावान किया है --- रात के बाद जब दिन आ सकता है तो इस गंदे जमाने के बाद अच्छा समय भी आएगा l भविष्य की आशाएं हमको कहती हैं --- नया युग आएगा , ऐसा युग आएगा जिसमे आदमी के पास प्रेम , त्याग , नीति , भलमनसाहत आदि सद्गुण होंगे , थोड़े साधनों में गुजरा कर लेगा l मनुष्य संयम से रहना सीखेगा और इसी शरीर में से अपनी मजबूती पैदा कर लेगा l
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने अपनी अमृतवाणी में कहा था ----- " अब जिन परिस्थितियों में मनुष्य रह रहा है और जिस रास्ते पर चल रहा है , उस पर मौत के अलावा दूसरी चीज हमको दिखाई नहीं पड़ती l हम और आप ऐसे वक्त में रह रहे हैं जिसमे इनसान का स्वार्थ बेहिसाब रूप से बढ़ता जा रहा है l आदमी समझदार तो बहुत होता जा रहा है , पर आदमी पत्थर का बनता जा रहा है , निष्ठुर बनता जा रहा है -------- काम - वासना और तृष्णा के अलावा और कोई दूसरा लक्ष्य नहीं है l ऐसा घिनौना लक्ष्य जिससे इनसानियत भी शर्मिंदा होती है l अब इसके अंदर से दया , करुणा , ममता , स्नेह , दुलार और आदर्शवाद के सारे सिद्धांत खतम होते जा रहे हैं l अगर तरक्की इसी हिसाब से होती चली गई तो आप देखना आदमी को एक - दूसरे से डर मालूम पड़ेगा l पहले आदमी को देखकर हिम्मत बंधती थी कि आदमी आ गया , वह हमारी सहायता कर सकता है , हम एक से दो हो गए l लेकिन अब हमको भय मालूम पड़ता है कि कहीं ऐसा न हो कि हमारे साथ - साथ जो व्यक्ति चलता है , वही हमारे लिए पिशाच न सिद्ध हो l ---------- आदमी की जो तरक्की हो रही है , उसे देखकर ऐसा मालूम पड़ता है कि इससे तो हमारा पिछड़ापन लाख दरजे अच्छा था , यह तरक्की मुझे बड़ी खौफनाक मालूम पड़ती है l "--------------
आचार्य श्री ने हमें भविष्य के प्रति आशावान किया है --- रात के बाद जब दिन आ सकता है तो इस गंदे जमाने के बाद अच्छा समय भी आएगा l भविष्य की आशाएं हमको कहती हैं --- नया युग आएगा , ऐसा युग आएगा जिसमे आदमी के पास प्रेम , त्याग , नीति , भलमनसाहत आदि सद्गुण होंगे , थोड़े साधनों में गुजरा कर लेगा l मनुष्य संयम से रहना सीखेगा और इसी शरीर में से अपनी मजबूती पैदा कर लेगा l
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