आचार्य श्री ने लिखा है --- संयम हमारी जीवनीशक्ति को संचित करने के साथ - साथ हमारे स्वास्थ्य का संरक्षण भी करता है l संयम के माध्यम से हमारी ऊर्जा का व्यर्थ अपव्यय नहीं होता , बल्कि इस पर नियंत्रण होता है l संयम के माध्यम से हमें न केवल शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है , बल्कि इसके द्वारा विवेक का जागरण होता है , जिससे हम अपनी ऊर्जाओं और क्षमताओं का सही सदुपयोग कर पाते हैं l
श्रीमदभगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को कहते हैं ---- अशांतस्य कुत: सुखम अर्थात अशांत व्यक्ति कभी भी सुखी नहीं रह सकता l भौतिक सुख सुविधाएँ और बौद्धिक ज्ञान - विज्ञान , दोनों ही व्यक्ति को आंतरिक शांति नहीं दे सकते l धन और सुविधाएँ व्यक्ति को शारीरिक सुख तो दे सकते हैं , किन्तु आत्मिक आनंद नहीं l सच्ची शांति और आनंद तो केवल संयम और संतोष से ही मिलता है l
आचार्य श्री का कहना है ---" शरीर को स्वस्थ रखने का एकमात्र साधन इंद्रिय संयम है l
अस्वस्थ शरीर के रहते हुए कितना भी भौतिक सुख उपलब्ध हो , शरीर का दुःख , कष्ट उस सुख को नगण्य बना देते हैं l इन्द्रियों के माध्यम से हमारी ऊर्जा का निरंतर क्षरण होता रहता है l यदि इन पर संयम किया जाये तो अनावश्यक व्यर्थ होने वाली ऊर्जा का क्षरण रुकेगा और वह ऊर्जा शरीर को स्वस्थ व पुष्ट रखेगी l "
वर्ष 1918 में जब स्पेनिश फ्लू फैला था , तब गांधीजी भी इससे संक्रमित हो गए थे तब उन्होंने संयम , एकांतवास , मौन और खान - पान पर नियंत्रण से ही स्वयं को स्वस्थ किया l कोई कैसे स्वस्थ हो सकता है , यह उन्होंने अपने आचरण से संसार को दिखाया l
श्रीमदभगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को कहते हैं ---- अशांतस्य कुत: सुखम अर्थात अशांत व्यक्ति कभी भी सुखी नहीं रह सकता l भौतिक सुख सुविधाएँ और बौद्धिक ज्ञान - विज्ञान , दोनों ही व्यक्ति को आंतरिक शांति नहीं दे सकते l धन और सुविधाएँ व्यक्ति को शारीरिक सुख तो दे सकते हैं , किन्तु आत्मिक आनंद नहीं l सच्ची शांति और आनंद तो केवल संयम और संतोष से ही मिलता है l
आचार्य श्री का कहना है ---" शरीर को स्वस्थ रखने का एकमात्र साधन इंद्रिय संयम है l
अस्वस्थ शरीर के रहते हुए कितना भी भौतिक सुख उपलब्ध हो , शरीर का दुःख , कष्ट उस सुख को नगण्य बना देते हैं l इन्द्रियों के माध्यम से हमारी ऊर्जा का निरंतर क्षरण होता रहता है l यदि इन पर संयम किया जाये तो अनावश्यक व्यर्थ होने वाली ऊर्जा का क्षरण रुकेगा और वह ऊर्जा शरीर को स्वस्थ व पुष्ट रखेगी l "
वर्ष 1918 में जब स्पेनिश फ्लू फैला था , तब गांधीजी भी इससे संक्रमित हो गए थे तब उन्होंने संयम , एकांतवास , मौन और खान - पान पर नियंत्रण से ही स्वयं को स्वस्थ किया l कोई कैसे स्वस्थ हो सकता है , यह उन्होंने अपने आचरण से संसार को दिखाया l
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