योग विज्ञान के अनुसार व्यक्ति व व्यक्तित्व का शक्तिसंपन्न व समर्थ - बलशाली होने से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है उसका सद्गुण संपन्न होना , गुणवान होना , मानवीय मूल्यों के प्रति सचेष्ट व समर्पित होना क्योंकि सद्गुणों के अभाव में शक्ति के दुरूपयोग की संभावना हमेशा बनी रहती है l गुणहीन व्यक्तियों के पास जो भी शक्ति आती है , वो हमेशा दुरूपयोग करते हैं , फिर यह शक्ति चाहे सामाजिक हो , राजनीतिक हो या फिर वैज्ञानिक l
संसार में अनेक ऐसी जातियाँ हैं जो परिश्रमी हैं , जागरूक हैं , समय की पाबंद हैं , कर्तव्य पालन , स्वास्थ्य , सफाई , नियमितता आदि अनेक बातों का ध्यान रखती है , संगठित हैं , साहसी हैं , अपने राष्ट्र के प्रति समर्पित हैं लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि वे सद्गुणसंपन्न भी हैं l सद्गुणी होने का अर्थ है ---- मानवीय मूल्यों का ज्ञान , नैतिकता , सत्य बोलना , ईमानदारी , किसी को कष्ट न देना , किसी का हक न छीनना , दया , करुणा , ममता , भाईचारा , प्रेम , शांति - सहयोग , सेवा भाव , अहंकार न करना , लोगों को चैन से जीने देना , स्वार्थ व लालच न होना , श्रेष्ठ चरित्र आदि सद्गुण यदि शक्तिसम्पन्न लोगों में होते तो संसार में इतने युद्ध , अन्याय , अत्याचार , उत्पीड़न न होता l
सद्गुणों में एक आकर्षण होता है इसलिए स्वार्थ , लालच , कामना , वासना और तृष्णा में डूबा हुआ बुरे से बुरा व्यक्ति भी अपने ऊपर शराफत का नकाब डालकर रहता है , अपनी असलियत को दुनिया से छिपा कर रखने का हर संभव प्रयास करता है l
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य ने वाङ्मय में लिखा है ---- ' सचमुच में अपने को सभ्य कहने वाला मनुष्य आज कितना बनावटी हो चला है l बात - बात पर अभिनय करने वाला , समय - समय पर भिन्न - भिन्न मुखौटे ओढ़ने की विडम्बना में फँसा हुआ आज का मनुष्य बोता तो बहुत है किन्तु काटता कुछ नहीं l '
संसार में अनेक ऐसी जातियाँ हैं जो परिश्रमी हैं , जागरूक हैं , समय की पाबंद हैं , कर्तव्य पालन , स्वास्थ्य , सफाई , नियमितता आदि अनेक बातों का ध्यान रखती है , संगठित हैं , साहसी हैं , अपने राष्ट्र के प्रति समर्पित हैं लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि वे सद्गुणसंपन्न भी हैं l सद्गुणी होने का अर्थ है ---- मानवीय मूल्यों का ज्ञान , नैतिकता , सत्य बोलना , ईमानदारी , किसी को कष्ट न देना , किसी का हक न छीनना , दया , करुणा , ममता , भाईचारा , प्रेम , शांति - सहयोग , सेवा भाव , अहंकार न करना , लोगों को चैन से जीने देना , स्वार्थ व लालच न होना , श्रेष्ठ चरित्र आदि सद्गुण यदि शक्तिसम्पन्न लोगों में होते तो संसार में इतने युद्ध , अन्याय , अत्याचार , उत्पीड़न न होता l
सद्गुणों में एक आकर्षण होता है इसलिए स्वार्थ , लालच , कामना , वासना और तृष्णा में डूबा हुआ बुरे से बुरा व्यक्ति भी अपने ऊपर शराफत का नकाब डालकर रहता है , अपनी असलियत को दुनिया से छिपा कर रखने का हर संभव प्रयास करता है l
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य ने वाङ्मय में लिखा है ---- ' सचमुच में अपने को सभ्य कहने वाला मनुष्य आज कितना बनावटी हो चला है l बात - बात पर अभिनय करने वाला , समय - समय पर भिन्न - भिन्न मुखौटे ओढ़ने की विडम्बना में फँसा हुआ आज का मनुष्य बोता तो बहुत है किन्तु काटता कुछ नहीं l '
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