पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहना था --- " मनुष्य के लिए दो बातें ध्यान रखने योग्य हैं ---- एक मृत्यु और दूसरा कर्तव्य l हम इस संसार में आये हैं तो हमें अपने सांसारिक कर्तव्य को निभाना पड़ेगा , हम इस दायित्व से भाग नहीं सकते l जिन्हे मृत्यु याद रहती है , वे व्यक्ति अपना पूरा ध्यान कर्तव्यों के पालन में लगाते हैं और परमार्थी जीवन जीते हैं l क्योंकि कर्तव्यपालन कभी भी हमें स्वार्थी और आसक्त नहीं बनाता , बल्कि नित्य - निरंतर हमारे जीवन को उर्ध्वमुखी बनाता है l'
आचार्य श्री लिखते हैं --- ' मृत्यु अटल सत्य है , इसलिए हमें ईश्वर का स्मरण करते हुए ईमानदारी और सहृदयता के साथ जीवन जीना चाहिए l जरूरतमंदों की सहायता से कभी पीछे नहीं हटना चाहिए l
श्रीमद्भगवद्गीता के ग्यारहवें अध्याय का माहात्म्य बताते हुए भगवन शिव ने कहा है ---- ' जो व्यक्ति जरुरत के समय व्यक्ति से अपनी नजरें फेर लेता है , वह नीच योनियों में जन्म लेता है और जरुरत के समय दूसरों की सहायता करने वाला व्यक्ति कई पापों से मुक्त हो जाता है l इसलिए व्यक्ति को परमार्थी होना चाहिए l मनुष्य का जन्म ही इस उद्देश्य के लिए हुआ है कि वह अपने जीवन को सार्थक कर सके , और सार्थकता तभी हासिल की जा सकती है , जब मनुष्य अपने जीवन के परम अर्थ को समझ सके l जो व्यक्ति समय रहते इस अर्थ को नहीं समझता , उसे अरथी पर जाकर ही जीवन का अर्थ ज्ञात होता है , लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है l
आचार्य श्री लिखते हैं --- ' मृत्यु अटल सत्य है , इसलिए हमें ईश्वर का स्मरण करते हुए ईमानदारी और सहृदयता के साथ जीवन जीना चाहिए l जरूरतमंदों की सहायता से कभी पीछे नहीं हटना चाहिए l
श्रीमद्भगवद्गीता के ग्यारहवें अध्याय का माहात्म्य बताते हुए भगवन शिव ने कहा है ---- ' जो व्यक्ति जरुरत के समय व्यक्ति से अपनी नजरें फेर लेता है , वह नीच योनियों में जन्म लेता है और जरुरत के समय दूसरों की सहायता करने वाला व्यक्ति कई पापों से मुक्त हो जाता है l इसलिए व्यक्ति को परमार्थी होना चाहिए l मनुष्य का जन्म ही इस उद्देश्य के लिए हुआ है कि वह अपने जीवन को सार्थक कर सके , और सार्थकता तभी हासिल की जा सकती है , जब मनुष्य अपने जीवन के परम अर्थ को समझ सके l जो व्यक्ति समय रहते इस अर्थ को नहीं समझता , उसे अरथी पर जाकर ही जीवन का अर्थ ज्ञात होता है , लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है l
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