कहते हैं जब संसार में अनीति और अत्याचार बहुत बढ़ जाता है , तब प्रकृति क्रुद्ध हो जाती है l आज संसार में आतंकवाद , भ्रष्टाचार , व्यभिचार , हिंसा , हत्या जैसे अपराध अपनी चरम सीमा पर हैं l ये सब समस्या मनुष्य के ही नकारात्मक विचारों की देन है l आज ईमानदारी और श्रम को हिकारत की नजर से देखा जाता है l समाज में जो जितना भ्रष्ट है और जिसने बेईमानी की पूंजी एकत्र की है , उसी की प्रतिष्ठा व मान है l ऐसे में रातों रात अमीर होने और प्रतिष्ठा पाने के लिए व्यक्ति हर संभव प्रयत्न करता है , यही भ्रष्टाचार का मूल है l अपनी इस कुचेष्टा में जो जितना सफल है , वही प्रतिभावान माना जा रहा है l
धन प्रमुख है , मुख्य धुरी है इसी के चारों और विभिन्न अपराध चक्कर काटते हैं l यह सब एक सीमा में हो तब भी ठीक है , लेकिन जब धरती अंधकार से घिर जाए , इनसान संवेदनहीन हो
जाये , अँधेरे की शक्तियां और अंधकार फैलाने में लग जाएँ तब इस अनीति और अत्याचार से निपटने के लिए भगवन शिव अपना तृतीय नेत्र खोल देते हैं , हाथ में त्रिशूल धारण कर रौद्र रूप धारण करते हैं l कहते हैं परमात्मा को अपनी इस सृष्टि से बहुत प्यार है l यदि हमें ईश्वर के , प्रकृति के प्रकोप से बचना है तो हमें इस सृष्टि को सुन्दर बनाने के लिए योगदान देना होगा l
धन प्रमुख है , मुख्य धुरी है इसी के चारों और विभिन्न अपराध चक्कर काटते हैं l यह सब एक सीमा में हो तब भी ठीक है , लेकिन जब धरती अंधकार से घिर जाए , इनसान संवेदनहीन हो
जाये , अँधेरे की शक्तियां और अंधकार फैलाने में लग जाएँ तब इस अनीति और अत्याचार से निपटने के लिए भगवन शिव अपना तृतीय नेत्र खोल देते हैं , हाथ में त्रिशूल धारण कर रौद्र रूप धारण करते हैं l कहते हैं परमात्मा को अपनी इस सृष्टि से बहुत प्यार है l यदि हमें ईश्वर के , प्रकृति के प्रकोप से बचना है तो हमें इस सृष्टि को सुन्दर बनाने के लिए योगदान देना होगा l
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