कहते हैं सत्ता का नशा संसार की सौ मदिराओं से भी बढ़कर है l कोई भी व्यक्ति जो चाहे किसी छोटी सी संस्था में अपनी हुकूमत चलाता हो , या बड़ी से बड़ी व्यवस्था की हुकूमत करता हो , वह अपनी उस प्राप्त शक्ति को खोना नहीं चाहता l इसका सबसे बड़ा कारण है भय l सत्ता के नशे में किए गए गलत कार्यों के परिणाम से व्यक्ति भयभीत रहता है l इसलिए वह सत्ता में बने रहने का हर संभव प्रयास करता है l इसी सत्य को बताती हुई एक कथा है ------ युगों पहले की बात है , गणतंत्र था , अनेक स्वतंत्र राज्य थे , अच्छी शासन व्यवस्था थी l जनता के चुने हुए प्रतिनिधि थे l सत्ता में रहते - रहते उन्हें उसकी आदत हो गई , अहंकार आ गया , अत्याचार , अन्याय बढ़ा और प्रजा भी नाखुश रहने लगी l विभिन्न स्वतंत्र राज्यों के मुखिया आपस में मिलते थे और बड़े चिंतित थे , चाहते थे कि जब तक उनका जीवन है वे अपने पद पर बने रहें l वैसे सब स्वतंत्र राज्यों की अपनी नीति थी लेकिन अपने स्वार्थ , लोभ - लालच के वशीभूत होकर सबने मंत्रणा कर अपने- अपने राज्य में लोगों के मिलने - जुलने , संगठित होने पर प्रतिबन्ध लगा दिए , विभिन्न तरीकों से प्रजा को भयभीत कर दिया , जिससे विरोध करने की उनकी शक्ति ही न रहे l सत्ताधारियों ने अपनी ताकत से, चालाकी से युवाओं को अपने नियंत्रण में कर लिया , अब वे बच्चों से भयभीत होने लगे कि कहीं ये बड़े होकर उनके लिए खतरा न बन जाएँ l इसके लिए उन्होंने विभिन्न उचित - अनुचित तरीके अपनाये कि बच्चे मानसिक रूप से कमजोर हों , बीमारियों से ग्रसित हों l बच्चों का शोषण करने लगे l
कहते हैं संसार में एक शक्ति है जो अति को बर्दाश्त नहीं करती l बच्चों पर अत्याचार प्रकृति से सहन नहीं हुआ , धरती कांपने लगी और तीव्र भूकंप से वे सब राज्य धरती में समां गए l उनका नामोनिशान मिट गया ```````
कहते हैं संसार में एक शक्ति है जो अति को बर्दाश्त नहीं करती l बच्चों पर अत्याचार प्रकृति से सहन नहीं हुआ , धरती कांपने लगी और तीव्र भूकंप से वे सब राज्य धरती में समां गए l उनका नामोनिशान मिट गया ```````
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